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यह एक मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि तीव्र आवेश में आकर आदमी गलत कार्य कर बैठता है, परन्तु गलत काम कर देने के बाद यदि हृदय में अपने पाप के प्रति पश्चात्ताप का भाव न हो, अपनी गलती का इकरार न हो तो समझो कि वह हृदय नहीं, पत्थर है. उसके लिए परमात्मा के द्वार बन्द रहेंगे
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