Book Title: Mahopadhyay Kshamakalyan Ji Rachit Sahity
Author(s): Mehulprabhsagar
Publisher: Mehulprabhsagar

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ 122 मणिगुरु चरणरज आर्य मेहुलप्रभसागर SAMBODHI निर्माण के मध्य में ही महोपाध्यायजी का स्वर्गवास हो गया था। बाद में वि.सं.1874 में विनीतसुंदर गणि के शिष्य सुमतिवर्धन गणि, जिन्होंने पाठक प्रवर से विद्यार्जन किया, ने इस चरित्र को पूर्ण किया । व्याख्यान साहित्य महोपाध्यायजी ने विविध धार्मिक पर्यों का महत्त्व बताने वाले व्याख्यान साहित्य की रचना कर हलुकर्मियों के लिये सरल मार्ग का प्रदर्शन किया है। इनमें पर्युषणा, होलिका, मेरु त्रयोदशी, पौष दशमी, मौन एकादशी, चौमासी आदि प्रमुख हैं । संस्कृत भाषा में निबद्ध इन व्याख्यानों में अनेक प्राचीन गाथाएँ उद्धृत कर कथाओं को सरलता के साथ रुचिपूर्ण बनाया है। श्रीपाल कथा अवचूर्णी श्री रत्नशेखरसूरि कृत प्राकृत भाषामय 'सिरिवाल कहा' ग्रंथ पर महोपाध्यायजी द्वारा लिखित अवचूर्णी प्राप्त होती है। खंडान्वय पद्धति से निर्मित इस कृति में पाठ के प्रत्येक पद का सक्षम पर्यायवाची शब्द का प्रयोग कर अनेक स्थलों पर लोकोक्तियों को भी शामिल किया है । यथा 'पानीयं पीत्वा किल पश्चाद् गृहं पृच्छ्यते' । 'दग्धानामुपरि स्फोटकदानक्रिया किं करोषि' 'पित्तं यदि शक्करया सितोपलया शाम्यति तर्हि पटोलया कोशितक्या क्षारवल्या किम्' । साथ ही मारुगुर्जर भाषा में वि.सं.1854 में लिखित अंबड चरित्र भी प्राप्त होता है। विधि ग्रंथ संस्कृत भाषामय साधु विधि प्रकाश और मारुगुर्जर भाषा में लिखित श्रावक विधि प्रकाश, श्राद्ध आलोचन विधि, प्रायश्चित विधि, द्वादश व्रत टिप्पनक, प्रतिक्रमण हेतु विचार आदि कृतिया आपकी क्रियाशीलता को उजागर करती हैं। इन ग्रंथों में साधु एवं श्रावक योग्य दैनिक क्रियाओं का सप्रमाण विवेचन करते हुए क्रियाओं का सुयोग्य क्रम लिखा है। न्याय ग्रंथ श्री अन्नंभट्ट के सुप्रसिद्ध तर्क संग्रह ग्रंथ पर आपने फक्किका का निर्माण कर लक्षणों को खंडान्वय रीति से सरल भाषा में सुलझाने का सफल प्रयत्न किया है। इसी तरह न्यायसिद्धांतमुक्तावली ग्रंथ पर मुक्तावली फक्किका का निर्माण भी साहित्य सूची पत्र में प्राप्त होता है, यह ग्रंथ ज्ञानभंडारों में अन्वेषणीय है। भक्ति साहित्य त्रैलोक्य प्रकाश नामक कृति में वर्तमान चौबीस तीर्थंकरों की संस्कृत भाषा में स्तुति की रचना विविध छंदों में गुंथकर भक्त हृदय के भावों की अनुपम प्रस्तुति दी है। जिसमें भाषा सौष्ठव एवं पद लालित्य के साथ उच्च कोटि की पदयुक्तियाँ समाहित हैं।

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5