Book Title: Mahimamayi Nari
Author(s): Umravkunvar Mahasati
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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Page 1
________________ 000000000066555 महिमामयी नारी - • -महासती श्री उमरावकुंवर 'अर्चना' “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवताः।" इस छोटे से श्लोकांश से हमारी आज की बात शुरू होती है। इसमें कहा गया है कि जहाँ स्त्रियाँ पूजनीय दृष्टि से देखी जाती हैं, वहाँ देवता भी आनन्दपूर्वक क्रीड़ा करते हैं। इतिहास भी इस बात की साक्षी देता है कि नारी नर की सबसे बड़ी शक्ति रही है। नारी के बल पर ही वह अपने निर्दिष्ट पथ पर बढ़ता चला गया है और अनेकानेक विपत्तियों का मुकाबिला करता रहा है। मनुष्य को सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाने का श्रेय नारी जाति को ही है। अनेकानेक महापुरुष हुए हैं जो नारी के सहज व स्वाभाविक गुणों से प्रेरणा पाकर अपने पथ पर अग्रसर हो सके हैं। इसलिये सदा से मानव नारी का कृतज्ञ रहा है और उसे श्रद्धापूर्ण दृष्टि से देखता रहा है। जयशंकर प्रसाद ने इस युग में भी यही कहा है - नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रचत नग पगतल में। पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में। नारी ने त्याग, प्रेम, उदारता, सहिष्णुता, वीरता तथा सेवा आदि अपने अनेक गुणों से मानव को अभिभूत किया है, उसे विनाश के मार्ग पर जाने से रोका है। वह छाया की तरह पुरुष के जीवन में संगिनी बनकर रही है। पुत्री, बहन, पत्नी तथा माता बनकर उसने अपने पावन कर्तव्यों को निभाया है। इसलिये बड़े आदर युक्त शब्दों में उसके लिये कहा है - कार्येषु मन्त्री, करणेषु दासी, ___ भोज्येषु माता, शयनेषु रम्भा। धर्मानुकूला, क्षमया धरित्री, भार्या च षड्गुण्यवती सु दुर्लभा॥ अर्थात् प्रत्येक कार्य में मन्त्री के समान सलाह देने वाली, सेवादि में दासी के समान कार्य करने वाली, भोजन कराने में माता के समान, शयन के समय रम्भा के सदृश सुख देने वाली, धर्म के अनुकूल तथा क्षमा गुण को धारण करने में पृथ्वी के समान, इन छह गुणों से युक्त पत्नी दुर्लभ होती है। जो नारी इन गुणों से अलंकृत होती है वह अपने पितृकुल तथा श्वसुरकुल दोनों को ही स्वर्गतुल्य बना देती है। आनन्द व वैभव का उस गृह में साम्राज्य होता है। ऐसे ही गृहों में देवताओं का निवास माना जाता है। (२७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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