Book Title: Mahavir Mahatma Gandhi ki Bhoomi par Badhte Katlakhane Author(s): Yashpal Jain Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf View full book textPage 2
________________ 10.0 ६०८ दूसरा तर्क यह था कि गली-गली में पशु काटे जाते हैं। उनके काटने का ढंग बड़ा घिनौना है। उसका खून चारों ओर बहता है। हम कत्लखानों के द्वारा इस कार्य को वैज्ञानिक ढंग पर करना चाहते हैं। हमने उनसे कहा कि मांस से अधिक मांग तो वेश्याओं का खुले आम नाच कराने का है। क्या तुम उसकी व्यवस्था करोगे ? तुम्हारा यह कहना कि मांस खाने वालों को रोक दो हम कल्लखाने बन्द कर देंगे, बेमानी है। तब तुम कत्लखाने क्या बन्द करोगे, वे अपने आप बन्द हो जायेंगे। 2 जहाँ तक तुम्हारे इस तर्क का प्रश्न है कि तुम वैज्ञानिक ढंग पर कत्ल करना चाहते हैं, वह भी कोई अर्थ नहीं रखता। कत्ल कल है, चाहे अपने देश की बनी छुरी से करो, चाहे विदेश की बनी छुरी से हमारा तर्क उनके गले नहीं उतरा। जिनकी आँखों पर स्वार्थ का पर्दा पड़ा होता है, वे प्रकाश नहीं देख सकते। दुर्भाग्य से कत्लखाने बड़ी तेजी से देश में बढ़ते जा रहे हैं ? मजे की बात यह है कि विदेशों में लोग शाकाहार की ओर अधिकाधिक आकर्षित हो रहे हैं, परन्तु हमारे देश में उल्टा हो रहा है। हाल ही के अपने कैनेडा और अमरीका - प्रवास में हमने देखा कि जगह-जगह पर शाकाहारी भोजन की व्यवस्था है, नये-नये शाकाहारी होटल और रेस्तरां खुल रहे हैं, परन्तु हमारे देश में मांसाहार का प्रचार बराबर बढ़ रहा है। ऐसी दशा में प्रश्न उठता है कि कत्लखानों को किस प्रकार रोका जा सकता है? इसका एक ही उत्तर है- देशव्यापी आन्दोलन से। सरकार से कह दिया जाय कि हम अपना मत उस दल को देंगे, जो कत्लखानों को बंद करेगा। सरकार मत के मूल्य को भली प्रकार जानती और समझती है। जहाँ उसे यह पता चलेगा कि उसका अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है, वह तत्काल उस दिशा में कदम उठावेगा। इस प्रकार पहला उपाय है सरकार पर प्रत्येक आन्दोलन द्वारा प्रभाव डालना। दूसरा उपाय है पशुओं की निकासी पर प्रतिबंध लगाना। कत्लखाने उन पशुओं पर चलते हैं, जो गाँवों से बड़ी संख्या में भेजे जाते हैं? इसके लिए गाँव-गाँव में ऐसे संगठन बनाने होंगे, जो एक भी पशु को बाहर न जाने दें। इसमें युवा शक्ति और ग्रामों के अध्यापक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। तीसरे, देश भर में शाकाहार का प्रचार किया जाय। आज उस दिशा में जो प्रयास हो रहा है, वह पर्याप्त नहीं है। उस संबंध में कितना अज्ञान है, यह एक दृष्टान्त से स्पष्ट हो जाता है। कुछ वर्ष पूर्व हम अपने लड़के सुधीर के पास कैनेडा गए थे। एक दिन बाहर से लौट रहे थे तो एक रेस्तरां में चाय पीने के लिए dialli Execation International उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ रुक गए। सुधीर ने वहाँ काउण्टर पर खड़ी लड़कियों से कहा"मेरे माता-पिता यहाँ हैं वे पूर्ण शाकाहारी हैं। उन्हें कुछ ऐसी चीजें खाने को दे दो, जिनमें अण्डा भी न हो।" उनमें से एक लड़की ने उत्सुक होकर पूछा - "तुम्हारे मातापिता स्वस्थ तो हैं न?" "तुम्हीं उनके पास जाकर पूछ लो ।" सुधीर ने उत्तर दिया। एक लड़की मेरे पास आई। युवा थी । बोली- “आपके बेटे का कहना है कि आप पूर्ण शाकाहारी हैं। आपकी उम्र कितनी है ?" यह दश वर्ष पहले की घटना है। मैंने कहा- "यह मेरा बहत्तरवाँ वर्ष है।" "" यह लड़की मेरी ओर मुँह फाड़ कर देखती रह गई। फिर बोली- देखिये, हमारे माता-पिता कहते हैं कि तुम मांस नहीं खाओगी तो कमजोर हो जाओगी और जल्दी मर जाओगी।" मैंने हँसकर कहा-"तुम्हारे माता-पिता और तुम कितने अज्ञान में हो, यह प्रत्यक्ष देख रही हो।" लड़की विस्मित होकर चली गई। शाकाहार के प्रभावशाली प्रचार के द्वारा लोगों के इस भ्रम और अज्ञान को दूर करना होगा। बड़े-बड़े चार्ट बनाकर लोगों को समझाना होगा कि मांस में जितने पोषक तत्त्व माने जाते हैं, उनसे अधिक पोषक तत्त्व शाकाहारी भोजन में हैं। इसको प्रदर्शिनी द्वारा दिखाया जाना आवश्यक है। भारत-भूमि भगवान महावीर की भूमि है, महात्मा गांधी की भूमि है। महावीर की जानकारी कम लोगों को है, लेकिन गांधी और उसकी अहिंसा को तो सारी दुनियाँ जानती है। जानती ही नहीं मानती भी है। उनके महान व्यक्तित्व और उनके महान आदर्शों को सकल विश्व के लिए कल्याणकारी मानती है। ऐसी पवित्र भूमि पर निर्दोष-निरीह मूक प्राणियों का खून बहे उनकी निर्मम हत्या हो, इससे अधिक लज्जा और कलंक की बात क्या हो सकती है ? विज्ञान और तकनीक की दृष्टि से चरम शिखर पर पहुँची दुनियाँ इतनी अमानवीय इतनी संवेदनहीन हो, इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती हैं ? एक समय था जब कि प्रेम और जीव दया के क्षेत्र में भारतवासियों ने उत्कृष्ट आदर्श प्रस्तुत किया था। अल्वर्ट स्विट्जर का नाम आज भी आदर से लिया जाता है। उन जैसे अनगिनत व्यक्ति विभिन्न देशों में हुए हैं, जिन्होंने प्राणि मात्र के प्रति अपार करुणा प्रदर्शित की। भारत की भूमि में तो सबके कल्याण के गीत किसी युग में गाये जाते थे। जन-जन की जिह्वा पर रहता था - "सर्वे भवन्तु सुखिनाः ।" संसार के समस्त प्राणी सुखी हो। सर्वे सन्तु निरामया ।" संसार के सभी प्राणी नीरोग हों। of Private & Personal Use Onl 750 2906 Daedresorg • de goedPage Navigation
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