Book Title: Mahavir Jivan aur Mukti ke Sutrakar
Author(s): Jaykumar Jalaj
Publisher: Z_Rajendrasuri_Janma_Sardh_Shatabdi_Granth_012039.pdf

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Page 1
________________ महावीर : जीवन और मुक्ति के सूत्रकार प्रो. जयकुमार 'जलज' महावार में और बहुत से दूसरे महापुरुषों में एक मौलिक अन्तर है । महावीर की यात्रा विचार से आरम्भ होती है, जबकि बहुत से महापुरुषों की यात्रा का आरम्भ दयाभाव से होता है। जैन धर्म के बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के साथ तो अवश्य यह हुआ कि वे बंधे हुए पशुओं को देखकर द्रवित हो गये और उन्होंने संन्यास ले लिया। लेकिन महावीर के साथ ऐसी कोई घटना घटित नहीं हुई । वे चिन्तन के माध्यम से सन्यास तक पहुंचे । इसलिये महावीर हमारे भीतर किसी दयाभाव या गलदश्रु भावुकता को नहीं जगाते, वे हमारे चिन्तन को प्रेरित करते हैं । हमारे प्रश्नों का उत्तर देते हैं और हमारी जिज्ञासाओं को शान्त करते हैं। वे हमें कायल करते हैं और हमें उनके साथ सहमत होना पड़ता है। ___ महावीर की यात्रा विचार से आरम्भ होने के कारण वे एक ऐसे दर्शन को उपलब्ध कर सके जिसमें कहीं कोई छेद नहीं है और जो जीर्ण हीना जानता ही नहीं है । पच्चीसवीं शताब्दी ही नहीं, पचासवीं या सौवीं शताब्दी भी उसे ओढ़ सकती है। वह ओछा पड़ने वाला नहीं है । इतिहास में ऐसा एक ही . उदाहरण और है जहाँ चिन्तन के माध्यम से एक सर्वव्यापी दर्शन तक पहुंचा गया है । यह उदाहरण है कार्लमार्क्स का, लेकिन मार्क्स के समय तक बहुत सा ज्ञान प्रकाश में आ चुका था । मार्क्स के सामने पुस्तकालय खुले हुए थे । उन्होंने अपनी यात्रा वस्तुत: अध्ययन से आरम्भ की । महावीर के काल में इतना कुछ था ही नहीं । इसलिये उन्हें स्वयं की चिन्तनशक्ति पर ही निर्भर रहना पड़ा । उनके पास जो कुछ भी है वह उनका स्वयं का अजित किया हुआ है। उनके पहले के तेईस तीर्थंकरों की तपस्याओं के विवरण, उनके अहिंसा धर्म पर अडिग रहने के उल्लेख तो मिलते हैं लेकिन धर्म या आचरण के पीछे की दार्शनिक पीठिका को पहचानने और उसे स्पष्ट करने के उनके प्रयत्नों का उल्लेख नहीं मिलता। महावीर ने सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह आदि के एक भले आचरण को दर्शन की कायल कर देने वाली भूमि पर खड़ा किया। उन्होंने ऐसा न किया होता तो जैन धर्म एक आचार धर्म बनकर रह जाता। उसका भी यही हाल हुआ होता जो बहुत से विचारहीन आचारों का होता है । वह काल के किसी भी झोंके में उखड़ गया होता। ईसा से ५९९ वर्ष पूर्व महावीर का जन्म हुआ। उनके पिता सिद्धार्थ वैशाली के कुण्डग्राम में ज्ञातृ शाखा के गणराजा थे और माँ विदेह की राजकुमारी त्रिशला गणराज्य के महामान्य राष्ट्राध्यक्ष चेटक की बहिन (दिगम्बर पुराणों के अनुसार पुत्री) थी। इन्हीं चेटक की दूसरी बहिन चेल्लना मगध के राजा बिम्बिसार को ब्याही थी। महावीर के जन्म के पूर्व उनकी मां महारानी त्रिशला को स्वप्न में सोलह दृश्य दिखायी दिये-गजराज, वृषभ, सिंह, स्नान करती हुई लक्ष्मी, फूलों की माला, चन्द्रमा, सूर्य, आदि । राज्य ज्योतिषी ने इन स्वप्नों का विचार किया और घोषणा की कि महाराज सिद्धार्थ के यहाँ जो पुत्र उत्पन्न होगा वह अमरता को प्राप्त करेगा और उसकी साधना से समूचे विश्व में कल्याण का अवतरण होगा। ईसा से ५९९ वर्ष पूर्व, ग्रीष्म ऋतु, चैत्र मास, शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि, मध्यरात्रि-यह समय है महावीर के जन्म का । पुत्र के गर्भ में आने के समय से ही पिता राजा सिद्धार्थ के राज्य में धन-धान्य की अपार वृद्धि होने लगी थी । इसलिये उन्होंने पुत्र का नाम रखा बर्द्धमान । बचपन में अनेकानेक वीरतापूर्ण कार्यों के कारण वर्द्धमान को महावीर की संज्ञा प्राप्त हुई । धैर्य, गाम्भीर्य, स्थैर्य, ध्यान, चिन्तन और समझ महावीर में जन्मजात गुण प्रतीत होते हैं । लगता है, जैसे उन्हें जीवन में कोई बी. नि. सं. २५०३ Jain Education Intemational nterational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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