Book Title: Mahasati Kusumvatiji Maharaj ka Sahitya Ek Samiksha
Author(s): Rajendramuni
Publisher: Z_Kusumvati_Sadhvi_Abhinandan_Granth_012032.pdf

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Page 4
________________ निबन्धों में विवेचनात्मक और गवेषणात्मक ये दोनों मिलते हैं, जिसे हम ज्ञान प्राप्ति की संज्ञा भी दे ही प्रकार की विधाएं सम्मिलित हैं। आपके निबन्धों सकते हैं। की भाषा प्रांजल है, प्रवाह उत्तम है। सामान्य वर्तमान काल में भी यह चिन्तन की प्रक्रिया पाठक वर्ग के लिए सरल, सरस एवं बोधगम्य है, चल रही है । आज का साहित्यकार समाज को नयेजहाँ कहीं भी आपने संस्कृत/प्राकृत की गाथाओं नये विचार दे रहा है। यह विचार सामाजिक, को उद्धृत किया है । वहाँ आपने उसे विस्तार से आर्थिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक आदि विभिन्न | समझाया भी है । इससे पाठकों को आपके निबन्धों क्षेत्रों से सम्बन्धित हो सकते हैं। किन्तु जो सन्त । के कथ्य को समझने में सुविधा हुई है। होता है, साधक होता है, उसके चिन्तन का क्षेत्र 11 चूंकि आप जैन धर्म की एक परम विदूषी आध्यात्मिक होता है, जो अपने चिन्तन के फलमहासती हैं, इसलिए आपके निबन्धों के विषय भी स्वरूप आध्यात्मिक या दार्शनिक विचार सूत्र जनउसके अनुरूप ही हैं । निबन्धों में सामान्यतः उप- मानस को देता है। देश परक शैली का उपयोग किया गया है । आपके परम विदुषी महासती श्री कुसुमवती जी निबन्धों का अध्ययन करने से यह स्पष्ट हो जाता महाराज भी एक साधिका हैं। अध्ययन के साथ है कि आपका अध्ययन विस्तृत है, चिन्तन गम्भीर उनका चिन्तन भी सतत चलता रहता है। जिसके । है। विषय को गहराई से उद्धरणों और दृष्टान्तों यावरूप उनके मानस-पटल पर नये-नये सहित प्रस्तुत कर विषय वस्तु का समुचित रीत्या- विचार उत्पन्न होते रहते हैं। ये विचार-कण या 2 नुसार प्रतिपादन करने में आप सर्वथा सक्षम हैं। चिन्तन सूत्र सामान्यतः आध्यात्मिक होते हैं, किन्तु कहीं-कहीं सामाजिक चिन्तन भी प्रकट हुआ है। चिन्तन करना मानव का स्वाभाविक गुण है। समाज में रहते हुए वे जो देखती हैं उस पर भी वह जितना अध्ययन में डबकर उस पर विचार स्वाभाविक चिन्तन हो जाता है और जो नयी । करता है, नये-नये विचार उत्पन्न होते जाते हैं जो अनुभूति होती है/विचार उत्पन्न होते हैं, वे चिन्तन । कभा-कभी एक-एक पंक्ति से आठ या दस पंक्ति कण का स्वरूप ले लेते हैं । आपके इन विचार सूत्रों तक के हो सकते हैं। कभी-कभी विचार करते-करते में नया संदेश मिलता है। कुछ सूत्र तो ऐसे हैं, भी मानस पटल पर प्रकाश पंज की भांति विचारों जिन पर विस्तार से बहुत कुछ लिखा जा सकता का आविर्भाव होता है। कभी व्यक्ति भ्रमण करता है। इन सूत्रों में दार्शनिकता के साथ सामाजिकता होता है, कोई घटना देखता है और उसके मस्तिष्क भी पायी जाती है। सैद्धान्तिक विचारों के साथ में नवीन विचारों का आविर्भाव हो जाता है, यह कुछ व्यावहारिक दर्शन भी मिलता है। आपके बात तो सामान्य व्यक्ति की है। समस्त विचार सूत्रों का प्रकाशन अनुकरणीय प्रतीत । जब कोई साधक अपनी साधना में लीन होता । होता है । इस दिशा में आवश्यक प्रयत्न जरूरी है। है/ध्यान मग्न होता है तो उसके मानस-पटल पर भजन-स्तवन असंख्य दृश्य/विचार आते रहते हैं । वे विचार ही अपने आराध्य के स्मरणार्थ कुछ काव्य पंक्तियों उनके चिन्तन का सार होते हैं । यहाँ यह स्मरणीय की रचना की जाती है, जिसे विधा के अनुसार हैं कि प्राचीन संस्कृत प्राकृत साहित्य जो ऋषि- भजन या स्तवन स्तुति आदि कहा जाता है। प्राचीन COM मनियों की देन है, इसी चिन्तन का परिणाम है। भजन या स्तवन स्ततियां/स्तोत्र पर वस्तुस्थिति यह है कि इस चिन्तन में नये विचार में मिलते हैं। इन भजन स्तुतियों की विशेषता उनकी ।। चिन्तन सूत्र - ---- - - -- ---- ५२८ सप्तम खण्ड : विचार-मन्थन 5 साध्वीरत्न कुसुमवती अभिनन्दन ग्रन्थ ) Jain Education International PMate & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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