Book Title: Mahakavi Dhanpal Vyaktitva aur krutitva
Author(s): Manmal Kudal
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 3
________________ महाकवि धनपाल : व्यक्तित्व और कृतित्व ५७६ ................................................................ . ..... यह भी ध्यान में देने योग्य बात है कि कवि ने अपभ्रंश के कवि विबुध श्रीधर से भी बहुत कुछ ग्रहण किया था। क्योंकि आ० जिनसेन तथा समन्तभद्र ने अष्ट मूलगुणों में तीन मकारों और पाँच अणुव्रतों को गिनाया है। परन्तु विबुध श्रीधर ने मद्य, मांस, मधु और पाँच उदुम्बर फलों के त्याग को आठ मूलगुण कहा है मज्जुमंसु महणउ भाक्खेज्जइ पंचंबरफल णियरुमुइज्जइ । अट्ठमूलगुणु ए पालिजहिं सहुं संधाण एहि ण गसिजहिं ॥ -(भविसयम्बलि, ५, ३) रचनाएँ-धनपाल की एकमात्र अपभ्रंश रचना भविसयतकहा प्राप्त होती है। यह कथा २२ संधियों में विभाजित है । इसके तीन खण्ड हैं । प्रथम में भवियत के वैभव का वर्णन है । द्वितीय खण्ड में कुरुराज और तक्षशिलाराज के युद्ध में भविष्यदत्त की प्रमुख भूमिका एवं विजय का वर्णन है। तृतीय खण्ड में भविष्यदत्त के तथा उनके साथियों के पूर्वजन्म और भविष्य जन्म का वर्णन है। __ कथावस्तु-चरितनायक भविष्यदत्त एक वणिक् पुत्र है। वह अपने सौतेले भाई बन्धुदत्त के साथ व्यापार हेतु परदेश जाता है, धन कमाता है और विवाह भी कर लेता है। किन्तु उसका सौतेला भाई उसे बार-बार धोखा देकर दुःख पहुँचाता है । यहाँ तक कि उसे एक द्वीप में अकेला छोड़कर उसकी पत्नी के साथ घर लौट आता है और उससे विवाह करना चाहता है। किन्तु इसी बीच भविष्यदत्त भी एक यक्ष की सहायता से घर लौट आता है; अपना अधिकार प्राप्त करता है और राजा को प्रसन्न कर राजकन्या से विवाह करता है । अन्त में मुनि के द्वारा धर्मोपदेश व अपने पूर्वभव का वृत्तान्त सुनकर विरक्त हो, पुत्र को राज्य दे, मुनि हो जाता है। यह कथानक श्रुतपंचमी व्रत का माहात्म्य प्रकट करने के लिए लिखा गया है। ग्रन्थ के अनेक प्रकरण बड़े सुन्दर और रोचक हैं। बालक्रीड़ा, समुद्र-यात्रा, नौका-भंग, उजाड़नगर, विमान-यात्रा आदि वर्णन पढ़ने योग्य हैं। कवि के समय विमान हो अथवा न हो किन्तु उसने विमान का वर्णन बहुत सजीव रूप में किया है। वस्तु-वर्णन-कवि धनपाल ने अपने काव्य भविसयतकहा में वस्तु-वर्णन कई रूपों में किया है। कवि ने जहाँ परम्परामुक्त वस्तु-परिगणन, इतिवृत्तात्मक शैली को अपनाया है, वही लोक प्रचलित शैली में भी जन-जीवन का स्वाभाविक चित्रण कर लोकप्रवृत्ति का परिचय दिया है। वस्तु-वर्णन में नगर-वर्णन, कंचनद्वीप यात्रा वर्णन, समुद्रवर्णन, विवाह-वर्णन, युद्ध-यात्रा-वर्णन , युद्ध-वर्णन, तेल चढ़ाने का वर्णन, बसन्त-वर्णन, बाल वर्णन, राजद्वार वर्णन, शकुनवर्णन, वन-वर्णन, रूप-वर्णन, मेगानद्वीप का वर्णन और प्रकृति-वर्णन आदि का सजीव वर्णन किया है, जिसमें रसात्मकता देखी जा सकती है । घटना-वर्णनों के बीच अनेक मार्मिक स्थलों की नियोजना स्वाभाविक रूप से हुई है, जिनमें कवि की प्रतिभा अत्यन्त स्फुट है। वर्णन के कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैंविवाह-वर्णन किय मंडवसोह धरि धरि, बबइ तोरणई। उल्लोच सयाई रइयइ, जणमण चोरणई॥ -(भ० क० १, ८) रूप-वर्णन सा कमलसिरी जाउं तहु पत्ती अखलिय जिणवरसासणिभत्ती। समचक्कल कडियल सुमणोहर वियडरमणघणपोणपओहर । छणससि बिंब समुज्जलवयणी णवकुवलयवलदीहरणायणी। -(भ० क० १, १२) भाव-व्यंजना-प्रबन्ध में परिस्थितियों और घटनाओं के अनुकूल मार्मिक स्थलों की संयोजना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि कवि की प्रतिभा और भावुकता का सच्चा परिचय उन्हीं स्थलों पर मिलता है, जिनमें मनुल्य हृदय की वृत्तियाँ सहज रूप में, प्रसंग को हृदयंगम करते ही भावनाओं में तन्मय हो जाती हैं। धनपाल की रचना में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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