Book Title: Laghiyastrayadisangrah Author(s): Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । निवेदन। स्वर्गीय दानवीर सेठ माणिकचन्द हीराचन्दजी जे. पी. के कृती नामको स्मरण रखनेके लिए कौनसा कार्य किया जाय, जिस समय इस विषयपर विचार किया गया उस समय यही निश्चय किया गया कि उनके नामसे एक ग्रंथमाला निकाली जाय जिसमें संस्कृत और प्राकृतके प्राचीन ग्रन्थोंके प्रकाशित करनेका प्रबन्ध किया जाय । ग्रन्थोंका प्रकाशित करना और उनका प्रचार करना, यह सेठजीका बहुत ही प्यारा कार्य था, अतएव उनके स्मारकमें भी यही कार्य किया जाना सबने पसन्द किया और तदनुसार स्मारकफण्डकमेटीकी सम्मतिसे यह कार्य शुरू कर दिया गया । कमेटीने इस कार्यके लिए एक स्वतंत्र समिति भी बना दी जिसकी अनुमतिसे ग्रन्थोंका चुनाव, आमद खर्चकी व्यवस्था आदि कार्य सम्पादित होते हैं। ग्रन्थमालाके दो अंक लघीयस्त्रयादिसंग्रह और सागारधर्मामृत एक साथ ही प्रकाशित किये जाते हैं। आगेके लिए कवि हस्तिमल्लकृत विक्रांतकौरवीयनाटक, और महाकवि वादिराजसूरिकृत 'पार्श्वनाथचीरत' ये दो ग्रंथ तैयार कराये जा रहे हैं जो सम्भवतः दो दो महीनेके अंतरसे प्रकाशित हो जायेंगे। ग्रंथमालाका प्रत्येक ग्रंथ लागतके मूल्यपर बेचा जायगा, यह निश्चय हो चुका है, इसलिए यह आशा नहीं कि ग्रन्थमालामें कुछ मुनाफा रहेगा जिसके द्वारा यह कार्य स्थायीरूपमें चलता रहेगा । इसके सिवाय इसका फण्ड भी इतना नहीं है जिसके व्याजसे इसका खर्च चलता रहे, अतएव धर्मात्मा भाइयोंको चाहिये कि एक तो ग्रंथमालाके फण्डको बढानेका प्रयत्न करें और दूसरे इसके द्वारा प्रकाशित हुए ग्रन्थोंकी सौ सौ पचास For Private And Personal Use OnlyPage Navigation
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