Book Title: Kya Jain Sampradayo ka Ekikaran Sambhav hai Author(s): Jawaharlal Munot Publisher: Z_Anandrushi_Abhinandan_Granth_012013.pdf View full book textPage 4
________________ ormininAAAAPranamamamaAJAJanuahar आमाश्रीआनन्द 22 भाषाप्रवन नाचावर आमा 154 इतिहास और संस्कृति जो नये युवक-युवतियों में सम्प्रदाय विशेष को एकीकरण के रूप में ही अंगीकार करेगा। जो नव-श्रावकश्राविकाओं को समग्र जैन धर्म के प्रति सच्ची आस्था और सम्प्रदाय के प्रति सही जानकारी और अनेकान्तवादी आसक्ति से ओतप्रोत होगा। इसीलिये, मैं आशावादी हूँ क्योंकि उपसम्प्रदाय के एकीकरण के लिए, अमली रूप से हमने अब तक श्रावक-शक्ति का उपयोग ही कब किया है ? अगर श्रमण एक संघीय एकता के लिए तत्पर नहीं हैं या उसे कर पाने में कम-से-कम फिलहाल असमर्थ हैं तो चिन्ता की क्या बात है ? आधुनिक श्रावक तो एक हो ही सकते हैं और ऐसी स्थितियों को जन्म दे सकते हैं जो अन्ततोगत्वा सम्प्रदाय के एकीकरण और श्रमण संघ की सतही नहीं-मूलभूत एकता की पुनर्स्थापना करें। आचार्य प्रवर श्री आनन्द ऋषिजी महाराज का इससे श्रेष्ठ अभिनन्दन क्या हो कि उनके 75 वें सौभाग्यशाली जन्म-दिवस पर, सम्पूर्ण स्थानकवासी श्रावक समाज अपनी सामाजिक एकता और एकीकरण की शक्ति से अभिनन्दन करे और इस तपःपूत महर्षि को, एकत्र श्रावक-शक्ति से वन्दन करे ? आप पूछेगे, यह श्रावक-एकता सिद्ध कैसे हो ? मुझे बात सम्भव इसलिए लगती है क्योंकि स्थानकवासी जैन श्रावकों की व्यवहारिकता और सामान्य सांसारिकता पर मुझे भरोसा है / अगर मैं भूल नहीं करता तो प्रबुद्ध श्रावक-श्राविका के लिए सारे स्थानकवासी सम्प्रदाय की एकता के इस युग के, देश-काल के भारी महत्त्व को समझना अपेक्षतया सरल है और यही वह कड़ी है जो एकीकरण का रास्ता सुगम बनायेगी / हम जानते हैं कि श्रमण एकता छिन्न-भिन्न हो जाने पर भी श्रावक एकता अब तक उतनी खण्डित नहीं होने पाई और जरूरत इस बात की है कि श्रावक-एकता की प्रतीक संस्था (यथा-अ० भा० श्वे० स्था० कान्फ्रेन्स) में सभी उपसम्प्रदायों को उचित स्थान हो और वह इस प्रकार के काम-काज में अग्रसर हो जो श्रावक-एकता का मार्ग प्रशस्त करे। मैं इसी विश्वास का प्रबल समर्थक हूं कि हमारे प्रयत्नों से श्रावक संस्था न केवल बलशाली बने अपितु वह वीर्यवान, जीवप्रद भी हो। अगर किन्हीं कारणों से किसी उपसम्प्रदाय ने उससे अलगाव कर डाला है तो श्रावक सारी शक्ति से उन कारणों का उन्मूलन कर डालें। हमारा अन्तिम लक्ष्य सारे स्थानकवासी समाज का, सम्प्रदाय का एकीकरण है और श्रावक एकता इस मार्ग का पहिला बड़ा पडाव / एक बार श्रावक-एकता प्रस्थापित हो गई तो मुझे इसमें संशय नहीं कि उसका अगला कदम श्रमण-एकता ही होगा। दूसरे शब्दों में, श्रावक-एकीकरण का अमली अर्थ है. स्थानकवासी श्रावक-श्राविकाओं की भारतीय संस्था का प्रबलीकरण / क्या मैं देश के बिखरे श्रावक समाज से प्रार्थना करूँ कि वे सम्प्रदाय एकीकरण के महान अनुष्ठान में आगे आकर स्थानकवासी श्रावक-संस्था को मजबूत बनायेंगे ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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