Book Title: Kya Botik Digambar hai Author(s): Dalsukh Malvania Publisher: Z_Aspect_of_Jainology_Part_2_Pundit_Bechardas_Doshi_012016.pdf View full book textPage 4
________________ क्या बोटिक दिगम्बर हैं ? यहाँ एक स्पष्टीकरण आवश्यक है। मुद्रित आवश्यकचूणि में जितने अंश में बोटिक की चर्चा है, उसके माजिन में 'दिगम्बरोत्पत्ति' छपा है। किन्तु वह सम्पादक का भ्रम है। क्योंकि चूर्णि में भी बोटिक की चर्चा में कहीं भी स्त्री-मुक्ति की चर्चा को स्थान मिला नहीं है। अतएव बोटिक और दिगम्बर में भेद करना जरूरी है, इसीलिए बोटिक की उत्पत्ति का जो समय है, वह दिगम्बरोत्पत्ति या श्वेताम्बर-दिगम्बर-पृथक्करण का नहीं हो सकता। यहाँ यह भी बता देना जरूरी है कि विशेषावश्यक भाष्य की गाथा २६०९ की टीका में बोटिक-चर्चा का हेमचन्द्र ने उपसङ्हार करते हुए 'स्त्री-मुक्ति' की चर्चा के लिए उत्तराध्ययन के छत्तीसवें अध्ययन की टीका को देख लेने को कहा है। वह भी उनके मत में बोटिक और दिगम्बर-सम्प्रदाय को एक मानने के भ्रम के कारण है। जब मूल में स्त्री-निर्वाण-चर्चा की कोई सूचना ही नहीं है. तब उस चर्चा को यहाँ आना उचित नहीं है। इससे यह सिद्ध होता है कि आगे चलकर यह भ्रम श्वेताम्बर आचार्यों में फैला है कि दिगम्बर = नग्न होने के कारण बोटिक भी दिगम्बर-सम्प्रदाय है। यहाँ यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि बोटिक की चर्चा में जिनभद्र ने कहीं भी दिगम्बर शब्द का प्रयोग नहीं किया है। वस्त्र के लिए चेल और नग्न के लिए अचेल शब्द का प्रयोग है। बाह्य लिङ्ग के विषय में और बोटिक के विषय में आचार्य अभयदेव के मत का यहाँ निर्देश जरूरी है स्थानाङ्ग मूल में पाठ है__ "चत्तारि पूरिस जाया पन्नत्ता तं जहा-रूवं नाम एगे जहति, नो धम्म; धम्म नाम एगे जहति, न रूवं, एगे रूवं वि जहति, धम्मं वि; एगे नो रूवं जहति, नो धम्मं"। उसकी टीका में अभयदेव ने लिखा है-"रूपं साधुनेपथ्यं जहाति त्यजति कारणवशात्, न धर्मं चारित्रलक्षणं, बोटिकमध्यस्थितमुनिवत्; अन्यस्तु धर्म न रूपम्, निह्नववत्"। इससे इतना तो स्पष्ट होता है कि अभयदेव के मतानुसार बोटिकों के बीच कुछ मुनि ऐसे थे, जिनका बाह्य लिङ्ग तो श्वेताम्बरों के अनुकूल नहीं था, किन्तु मुनि-भाव यथार्थ था। निह्नव और श्वेताम्बरों में भेद यह है कि निह्नवों ने बाह्य वेश तो तत्काल में प्रचलित ही रखा था, किन्तु मान्यता में भेद किया था। किन्तु आचार्य जिनभद्र ने, जो अभयदेव से पूर्वकालीन हैं, लिखा है-"भिन्नमय-लिंगचरिया मिच्छदिट्टित्ति बोडियाऽभिमया"। इसकी टीका में हेमचन्द्र ने लिखा है-"मतं च लिङ्गं च भिक्षाग्रहणादिविषया चर्या च मतलिङ्गचर्याः, भिन्ना मतलिङ्गचर्या येषां ते तथाभूताः सन्तो बोटिका मिथ्यादृष्टयोऽभिमताः।"४ यहाँ सामान्य रूप से बोटिकों के विषय में कहा है कि उनका मत, लिङ्ग और आचरण भिन्न है और ये मिथ्यादृष्टि हैं। जबकि अभयदेव ने उदारता से विचार किया है कि वेश कैसा १. स्थानाङ्ग, सत्र ३२०, पृ० २३९ । २. वही, टीका, पृ० २४१ । ३. विशेषावश्यक भाष्य, गाथा २६२० । ४. वही, गाथा २६२०, पृ० १०४४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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