Book Title: Kya Asangni Jivao me Manka Samvad Hai
Author(s): Bansidhar Pandit
Publisher: Z_Bansidhar_Pandit_Abhinandan_Granth_012047.pdf

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Page 2
________________ १४२ : सरस्वती वरदपुत्र पं० बंशीधर व्याकरणाचार्य अभिनन्दन ग्रन्थ ज्ञानकी उत्पत्ति दो प्रकारसे सम्भव है स्वापेक्ष और परापेक्ष अवधि, मन:पर्यय और केवल इन तोगोंकी उत्पत्ति स्वापेक्ष मानी गई है तथा मति और श्रुत इन दोनों ज्ञानोंको उत्पत्ति परापेक्ष मानी गई है। यहाँ परशब्दसे मुख्यतया स्पर्शन, रसना, नासिका, नेत्र और कर्ण से पांच द्रव्य इन्द्रियों और द्रव्यमन ग्रहीत होते हैं । मतिज्ञानका प्रारम्भिक रूप अवग्रह ज्ञान है और अनुमान उस मतिज्ञानका अन्तिमरूप है । मतिज्ञानका अंतिम रूप यह अनुमान ज्ञान श्रुतज्ञानकी उत्पत्तिमें कारण होता है। आगमके 'मतिपूर्वं श्रुतम्' इस वाक्पसे भी उक्त बातका समर्थन होता है । किसी एक पटशन्दमें गुरु द्वारा घटरूप अर्थका संकेत ग्रहण करा देनेके अनन्तर शिष्यको सतत पटशब्दश्रवण के अनन्तर जो घटरूप अर्थका बोध हो जाया करता है वह बोध उस शिष्यको अनुमान द्वारा उस घट शब्दमें घटरूप अर्थका संकेत ग्रहण करनेपर ही होता है। अतः अनुमानकी श्रुतज्ञानकी उत्पत्तिमें कारणता स्पष्ट है और चूँकि अनुमान मतिज्ञानका ही अंतिमरूप है, अतः मतिपूर्व श्रुतम्' ऐसा निर्देश आगममें किया गया है । कई लोगोंका स्थाल है कि 'जब अर्थ से अर्थान्तरके बोधको श्रुतज्ञान कहते हैं तो श्रुतज्ञानको अनुमान ज्ञानसे पृथक नहीं मानना चाहिये', परन्तु उन लोगोंका उक्त ख्याल ग़लत है, क्योंकि मैं ऊपर बतला चुका हूँ कि तज्ञानमें अनुमान कारण है, अतः अनुमानज्ञान और श्रुतज्ञान दोनों एक कैसे हो सकते हैं ? जिस प्रकार श्रुतज्ञानमें कारण अनुमानज्ञान है और अनुमानज्ञानके अनन्तर ही श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है उसी प्रकार अनुमानज्ञानमें कारण तर्कज्ञान होता है और तर्कज्ञानके अनन्तर ही अनुमानज्ञानकी उत्पत्ति हुआ करती है, इसी तरह तर्कज्ञानमें कारण प्रत्यभिज्ञान, प्रगभिज्ञानमें कारण स्मृतिज्ञान और स्मृतिज्ञानमें कारण धारणा ज्ञान हुआ करता है तथा तर्कज्ञानके अनन्तर ज्ञानकी उत्पत्तिके समान ही प्रत्यभिज्ञानके अनन्तर ही तर्कज्ञानकी, स्मृतिज्ञानके अनन्तर ही प्रत्यभिज्ञानकी और धारणाज्ञानके अनन्तर ही स्मृतिज्ञानकी उत्पत्ति हुआ करती है । इस प्रकार थुतज्ञानकी तरह उक्त प्रकारके मतिज्ञानोंमें भी मतिज्ञानकी कारणता स्पष्ट हो जाती है। क्योंकि अनुमान, तर्क, प्रत्यभिज्ञान स्मृति और धारणा ये सभी ज्ञान मतिज्ञानके ही प्रकार मान लिये गये हैं'मतिः स्मृति: संज्ञा चिन्ताभिनिबोध इत्यनन्तरम्' इस अगमवाक्य में मतिके अर्थ में 'अवग्रहेहावायधारणाः ' इस सूत्र वाक्यनुसार धारणाका अन्तर्भाव हो जाता है तथा प्रत्यभिज्ञानका ही अपर नाम संज्ञाको तर्कका ही अपर नाम चिन्ताको और अनुमानका ही अपर नाम अभिनिबोधको माना गया है । " यहाँ पर इतना और ध्यान रखना चाहिये कि जब स्मृति प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान इन सब प्रकारके मतिज्ञानों में तथा श्रुतज्ञानमें पदार्थका दर्शन कारण न होकर यथायोग्य ऊपर बतलाये गये प्रकारानुसार पदार्थज्ञान अथवा यों कहिये कि पदार्थज्ञानका दर्शन ही कारण हुआ करता है । अतः ये सब ज्ञान परोक्षज्ञानकी कोटिमें पहुँच जाते है क्योंकि पदार्थदर्शनके अभाव में उत्पन्न होनेके कारण इन सब ज्ञानोंमें विशवताका अभाव पाया जाता है जबकि 'विशदं प्रत्यक्षम् ' आदि वाक्यों द्वारा आगममें विशद ज्ञानको ही प्रत्यक्षज्ञान बतलाया गया है | यहाँ पर ज्ञानको विशदताका तात्पर्य उसकी स्पष्टतासे है और ज्ञानमें स्पष्टता तभी आ सकती है जबकि वह ज्ञान पदार्थदर्शनके सद्भाव में उत्पन्न हो । तात्पर्य यह है कि यद्यपि प्रत्येक ज्ञानमें दर्शन कारण होता है परन्तु इतना विशेष है कि किसी-किसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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