Book Title: Kshamakalyanji aur Unka Sadhu Samudaya
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf

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Page 2
________________ / 127 / अजमेर, बीकानेर, जोधपुर, मंडोवर में आपने प्रतिष्ठाए स्तूप प्रतिष्ठित हैं। श्री सीमंधर स्वामीजी के मन्दिर व करवायीं। अनेक श्रावक श्राविकाओं ने आपसे व्रत ग्रहण सुगनजी के उपाश्रय में आपकी मूर्तियाँ स्थापित हैं। किया। सभी प्रसिद्ध तीर्थो की आपने यात्राएं की। आपकी तरुण और वृद्धावस्था के कई चित्र भी उपलब्ध सं० 1966 में गिडिया राजाराम व संघपति तिलोकचंद हैं। आपके अक्षर बड़े सुन्दर थे आपके लिखे हुए पत्र का लूणिया के विशाल संघ के साथ शत्रुञ्जय गिरनार आदि ब्लाक, आपका चित्र, रचनाओं की सूची और विशेष जीवन तीर्थों की यात्रा की। परिचय श्री पुण्यस्वर्ण ज्ञानपीठ, जयपुर से प्रकाशित आपके ___ आपने अनेक सुयोग्य शिष्यादि को विद्याध्ययन कर- प्रश्नोत्तर सार्द्ध शतक के हिन्दी अनुवाद में प्रकाशित कर वाया। जिनमें से सुमतिवद्धन और उमेदचन्द्र को उल्ले- चुका हूँ। आपकी कई संस्कृत की रचनाएँ व स्तवनादि खनीय रचनायें प्राप्त हैं। सं० 1868 में शारीरिक अस्व- प्रकाशित हो चुके हैं। कल्याण विजय, विवेक विजय, विद्या. स्थता के कारण आप किशनगढ़ से बीकानेर आ गये और नन्दन, धर्मविशाल आपके शिष्य थे। धर्मानन्दजी के शिष्य अन्तिम समय तक वहीं विराजे / सं० 1873 पोष बदि 14 राजसागरजी उनके शिष्य ऋद्धिसागरजी के शिष्य सुखमंगलवार को बीकानेर में आपका स्वर्गवास हुआ / आपके सागरजी हुए / क्षमाकल्याणजी अपने समय के बड़े आगअग्नि संस्कार स्थान पर रेल दादाजी में चरणपादुका एवं मज्ञ और गीतार्थ पुरुष थे / n i दीलाnasi raastaniहिशा मदिरहाणीचा टेसनदीमाइसनेमा नंद उपासमारी Bananatanोला। मीरकडधाममा मनमायोरेवारीविमानानदेवासवश्यादिवती डाकाकशासवााविस लाकताहराबासाहीयामा कियनयानलिधिविदेदार मालोचकवालीदाताहोव! हमीरीनगरवसायामीटा। डोकीसनहसखीतिनिय| मादितकलामनिवंबanna वाणिदोवीसहितादीनantall हितमतिमाणिजिनवहतली कधीमाजिदरमालasघमे || दाबायसी प्रागंदमुहिगुमाइति श्रीविनातिकीशास्तधनाजी|| तासं9uaryमितीवदिदिलमंसहनलिyिaarijावतो नावात्रादकाबाईमोनावताश्री :||ii : // ॥श्री:॥ --monom श्री मद् देवचन्द्रजी के हस्ताक्षरों में आनंदवर्द्धन कृत चौवीसी का अन्तिम पत्र (1770) अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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