Book Title: Kshamakalyan Gani ki Sanskruti Sathiya Sadhna Author(s): Diwakar Sharma Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf View full book textPage 6
________________ इनका आयोजन विशेषरूपसे होता है। विक्रम संवत् 1835 में रचित 'होलिका व्याख्यानम् क्षमाकल्याण मुनिका सबसे पहला व्याख्यान है।' इसका पठन-पाठन होलिका पर्वपर किया जाता है / इत्थं वृथव संभूतं होलिकापर्व विज्ञाय सुधीभिः शुभार्थ कर्त्तव्यं किन्तु तस्मिन् दिने प्रतिक्रमण-व्रतजिनपूजादिधर्मकार्य विधेयम्, यो हि होलिकाज्वालायां गुलालस्यैकां मुष्टि प्रक्षिपति तस्य दश उपवासाः प्रायश्चित्तम्, एककलशप्रमाण-जलप्रक्षेपणे शतमुपवासानां प्रायश्चित्तम्, एकपूगीफलप्रक्षेपे पञ्चाशत् वाराः होलिकायां काष्ठप्रक्षेपे सहस्रशो भस्मीभवनं भवति / मेरुत्रयोदशीव्याख्यानम् मेरुत्रयोदशीव्याख्यानम्की रचना महोपाध्याय क्षमाकल्याण द्वारा संवत् 1860 में बीकानेर प्रवासके समय की गयी थी। इसमें मेरु त्रयोदशीके व्रतसे पङ्गत्व दूर होने की कथा कही गयी है। गांगिल मुनिके उपदेशसे राजकुमारने यह व्रत किया था और अन्तमें स्वस्थ होकर उसने मलय देशको राजकुमारीसे विवाह कर लिया। इस कथानकको अत्यन्त सीधे शब्दोंमें जैन श्रावकोंको समझाया गया है। कथामें व्यावहारिक शैलीके अनुरूप शब्दोंका चयन किया गया है। वाक्य छोटे-छोटे होते हुए भी अत्यन्त सरस हैं / यथाधर्मस्य मूलं दया, पापस्य मूलं हिंसा, यो हिंसां करोति, अन्यः कारयति, अपरोऽनुमन्यते एते त्रयोऽपि सदश पापभाजः पुनर्यो हिंसां कुर्वन् मनसि त्रासं न प्राप्नोति, यस्य हृदये दया नास्ति, यो जीवो निर्दयः सन् बहून् एकेन्द्रियान् विनाशयति स परभवे वातपित्तादिरोगभाग भवति / चैत्यवन्दन-चतुर्विंशतिका चैत्यवन्दन चतुर्विशतिकामें महोपाध्याय क्षमाकल्याणने 24 तीर्थ करोंकी स्तुति अलग-अलग छन्दों में की है / प्रत्येक चैत्यकी स्तुति 3 श्लोकों द्वारा की गयी है परन्तु मल्लिजिन चैत्यके वन्दनामें 5 श्लोक होनेसे इसकी सम्पूर्ण श्लोक संख्या 74 है। भाषा-सौष्ठव और भावोंकी सुन्दर अभिव्यक्तिके कारण जैन स्तोत्र साहित्यमें इस स्तोत्रको सिद्धसेन दिवाकरके कल्याण मन्दिर और मेरुतुङ्गके भक्तामर आदि स्तोत्रोंकी श्रेणी में रखा जाता है। 1. (क) श्रीमन्तो गुणशालिनः समभवन्, प्रीत्यादिमाः सागरास्तच्छिष्यामृतवाचकवराः सन्ति स्वधर्मादराः / तत्पादाम्बुजरेणुराप्तवचनस्मर्ता विपश्चित् क्षमाकल्याणः कृतवानिदं सुविशदं व्याख्यानमाख्यानभृद् // -होलिका व्याख्यानम्-अन्तिम प्रशस्ति / (ख) संवदवाणकृशानुसिद्धिवसुवा 1835 संख्ये नभस्येऽसिते पक्षे पावन-पंचमी सुदिवसे पाटोधिसंज्ञे पुरे / / -होलिका ब्याख्यानम्-अन्तिम प्रशस्ति / 2. होलिकाव्याख्यानम-द्वादश कथा संग्रह-पृष्ठ 28 / 3. संवद् व्योमरसाष्टेन्दु (1860) मिते फाल्गुन मासके / असितैकादशीतिथ्यां बीकानेराख्यसत्पुरे / व्याख्यानं प्राक्तनं वीक्ष्य निबद्धं लोकभाषायां / अलेखि संस्कृतीकृत्य क्षमाकल्याणपाठकैः / / -मेरु त्रयोदशी व्याख्यानम-प्रशस्ति 4. मेरु त्रयोदशी व्याख्यानम्-पृष्ठ 4 / 5. इत्थं चतुर्विंशति संख्ययैव प्रसिद्धिभाजां वरतीर्थभाजाम् / श्रीजैन वाक्यानुसृतप्रबंधा वृतैरहीना प्रणुतिर्नवीना // गणाधिपश्रीजिनलाभसूरिप्रभुप्रसादेन विनिर्मितेयम् / जिनप्रणीतामृतधर्मसेविक्षमादिकल्याणबुधेन शुद्धयै / / -चैत्यवन्दन-चतुर्विशतिका-प्रशस्ति इतिहास और पुरातत्त्व : 151 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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