Book Title: Kshama aur Vishwa Shanti
Author(s): Sundarlal B Malhari
Publisher: Z_Lekhendrashekharvijayji_Abhinandan_Granth_012037.pdf

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Page 1
________________ क्षमा और विश्व शान्ति क्षमा : युग की मांग तनाव है, समाज समाज में उंचनीच आज व्यक्ति व्यक्ति में में भेदभाव है, वैमनस्य है राष्ट्र-राष्ट्र में स्पर्धा है, परस्पर द्वेष है, प्रतिशोध की भावना है। चारों ओर अशान्ति है, प्रतिहिंसा की भावना, है, विनाशकारी शस्त्रों की होड़ लगी हुई है। अधिकांश देश आन्तरिक संघर्षों से परेशान है। आये दिन वहाँ कभी धर्म के नाम पर तो कभी किसी जाति के नाम पर तो कभी किसी पार्टी के नाम पर लडाइयाँ छिड जाती है. लोग मरने मारने पर उतारू हो जाते है रक्तपात हो जाता है देश की विशाल सम्पति देखते ही देखते नष्ट कर दी जाती है। हजारों लाखों लोग बेघर बेसहारा हो जाते है और दयनीय जीवन बिताने के लिये विवश हो जाते है। पिछले दिनों में श्रीलंका में क्या हुआ ? आजकल पाकिस्तान में क्या हो रहा है कुवेत में क्या हो रहा है? ऐसा और भी कई देशों में हो रहा है। भारत भी अपवाद नहीं है आसाम आज भी अशान्त है, पंजाब का तनाव भी समाप्त नहीं हुआ है। सच पूछा जाय तो आज सम्पूर्ण विश्व ही तनाव ग्रस्त है, बुरी तरह से अशान्त है, हिंसा से परेशान है ऐसी अवस्था में यदि आज विश्व को सम्पूर्ण मानवता को सबसे ज्यादा किसी बात की आवश्यकता है तो वह है क्षमाशीलता की हृदय की विशालता की परस्पर सद्भावना की। जिस प्रकार क्रोध से क्रोध नही मिट सकता, घृणा से घृणा नही मिट सकती, द्वेष से द्वेष नही मिट सकता। ठिक इसी प्रकार युद्ध से युद्ध नही मिटाये जा सकते हिंसा से हिंसा नही मिटायी जा सकती। क्षमा है अन्तस की उदारता क्षमा का अर्थ है माफ करना, दूसरों के द्वारा पहुँचाये गये कष्टों को सहन करना, उनपर क्रोध न करना, क्रोध आ भी जाए तो उसें संयमित करना इतना ही नहीं अपितु कष्ट देने वाले के अपराध को बिसराकर उसके प्रति मंगल कामना करना व उसके हित के लिये प्रभु से प्रार्थना करना सही अर्थों में क्षमा है। क्षमा का अर्थ है अन्तः करण की विशालता, मन की निर्मलता आचरण की शुद्धता क्षमा का अर्थ है करुणा सहनशीलता, अहिंसा, विनम्रता, सरलता पवित्रता असीम उदारता जो समस्त प्राणियों में एकही आत्मा के दर्शन कराता है, दूसरों के दुख देख कर जिसकी आत्मा पिघल जाती है वही सच्चा क्षमादान है। महात्मा गांधी ने नाथूराम गोडसे की पिस्तौल की गोलियाँ हँसते-हँसते अपने सीने पर झेंली और उसे क्षमा करने के बाद ही अपने प्राण छोडे। इसे कहते है आदर्श क्षमा आज ऐसी ही क्षमाशीलता की मानवता के कल्याण के लिये विश्व शान्ति के लिये आवश्यकता है। जैन दर्शन में क्षमा आज से ढाई हजार वर्ष पहले भगवान महावीर ने मानवता को क्षमा का सन्देश दिया। उन्होंने बताया की जिस प्रकार ठंडा लोहा गरम लोहे को देखते ही देखते काट डालता है ठीक इसी प्रकार प्राणी उफनते हुए क्रोध को क्षमा के शीतल जल से क्षण भर में शान्त कर देता है। महावीर स्वयम क्षमा की मूर्ति थे। उन्होने स्वयम अनेक मरणान्तक पीडा पहुँचाने वाले परिसह शान्त भाव से सहे चंडकौशिक नाम के भयानक विषधर ने उनके पैरो को दंश मार मार कर छलनी बना डाला फिर भी उन्होंने वह सब शान्त भाव से सहते हुए उसे जीवन का सही मार्ग सिखाया। यह सोचकर कि बैल महावीर ने ही चुराये है एक ग्वाले ने तो आवेश जगत में जिस प्रकार बालक निर्दोष होता है, वैसे संत-साधु भी निर्मल होते हैं। २८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only ले. सुन्दरलाल बी. मल्हारी की भावनाएं है, धर्म धर्म www.jainelibrary.org

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