Book Title: Krantdarshishalaka Purush Bhagavan Mahavir
Author(s): Ranjan Suridev
Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf

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Page 1
________________ क्रान्तदर्शी शलाकापुरुष : भगवान् महावीर भगवान् महावीर प्रगतिशील वैज्ञानिक चेतना से सम्पन्न क्रान्तदर्शी पुरुष थे। वे ज्ञान, दर्शन और चरित्र के सम्यक्त्व की उपलब्धि से संवलित प्रसिद्ध पुरुष होने के कारण धन्यतम तिरेसठ शलाकापुरुषों में अन्यतम माने जाते थे। महावीर शलाका पुरुष थे, इसलिए वे ईर्या (शरीरगति) की विलक्षणता और ऊर्जा (मनोगति) की विचक्षणता से विभूषित थे। वे उत्तम शरीर के धारक थे। उनका शरीर वज्र - ऋषभ नाराच संहनन से युक्त था। अर्थात् उनका शरीरबंध वज्र की तरह अतिशय कठोर, वृषभ की तरह अत्यधिक बलशाली और लौहमय बाण की तरह अतिशय सुदृढ़ था। सम्पूर्ण सुलक्षणों से संपन्न उनका शरीरसंस्थान या शारीरिक संघटन समचतुरस्र अर्थात् सुडौल था जो अपनी श्रेष्ठ तप्त स्वर्ण जैसी चमक से आँखों को चकमका देने वाला था। यत्राकृतिस्तत्र गुणा वसन्ति के अनुसार महावीर के रूप में गुणों का मणिकांचन संयोग हुआ था। वे रूप के आगार और गुणों के निधान थे। महावीर का चरित्र परम अद्भुत है। वे किसी निश्चित या पूर्व परम्परित साध्य की पूर्ति के लिए नहीं जन्मे थे। जन्म लेना चूँकि संसारचक्र की अनिवार्यता है, इसलिए सामान्य मानव की तरह उन्होंने भी इस अनिवार्यता को मूल्य दिया था। संसार रूप जुए को जन्म और मरण रूप दो बैल खींचते हैं। इस संसार का दूसरा पहलू मुक्ति है, जहाँ जन्म और मरण दोनों नहीं हैं। मुक्ति अमृतत्त्व की साधना का साध्य है। जिस मनुष्य का जैसा विवेक होता है, उसका वैसा ही साध्य होता है और वैसी ही साधना भी होती है। प्रत्येक मनुष्य अपनी योग्यता के अनुकूल अपना साध्य निर्धारित करता है। महावीर जन्मना ततोऽधिक विवेकी थे । इसलिए उन्होंने मुक्ति को अपनी अमृतत्त्व - साधना का साध्य निश्चित किया था महावीर दुःषम- सुषमाकाल, अर्थात् अवसर्पिणीकाल की छह स्थितियों में चौथी स्थिति और इसी प्रकार छह स्थितियों वाले उत्सर्पिणी काल की तीसरी स्थिति में उत्पन्न हुए थे। वस्तुतः यह दुःख और सुख का सन्धिकाल था। ब्राह्मणों में किसी युगपुरुष जन्म-ग्रहणको अवतार कहने की परम्परा है, किन्तु श्रमणदृष्टि Jain Education International For Private अवतार शब्द का प्रयोग न करके जन्मकल्याणक शब्द का व्यवहार करती है। इसलिए कि अवतार शब्द में मानवेतर अलौकिक सृष्टि का भाव निहित है, किन्तु मानववादी जैनदृष्टि मनुष्य से इतर किसी अलौकिक शक्ति को मूल्य देकर मानव-अस्मिता के अवमूल्यन की पक्षधर नहीं है। विद्यावाचस्पति - डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव भिखना पहाड़ी, पटना... ईसा पूर्व छठी शती (५९९ वर्ष) में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी की आधी रात को महावीर ने जन्म लिया था । विदेह जनपद की वैशाली में कुण्डपुर नाम का नगर था, जिसके दो भाग थे। क्षत्रिय कुण्डग्राम और ब्राह्मण कुण्डग्राम । महावीर का जन्म ब्राह्मण कुण्डग्राम से गर्भान्तरण के बाद क्षत्रिय कुण्डग्राम में हुआ था । श्रुति परम्परा यह भी है कि महावीर पहले ब्राह्मणी के गर्भ में प्रतिष्ठित हुए थे, किन्तु तीर्थंकरों के क्षत्रिया के गर्भ से उत्पन्न होने की परम्परा रही थी, इसलिए महावीर को भी ब्राह्मणी के गर्भ से निकालकर क्षत्रिया के गर्भ में प्रतिष्ठित किया गया था। गर्भाहरण की इस घटना को ठाणं (स्थानांगसूत्र) में दस आश्चर्यक पद (अच्छेरग पद) में परिगणित किया गया है (द्र. स्थान. १० सूत्र - १६० ) । ६० महावीर की माता रानी त्रिशला क्षत्रियाणी थीं और पिता राजा सिद्धार्थ क्षत्रिय थे। वे दोनों पार्श्वनाथ की परम्परा के श्रमणोपासक थे। रानी त्रिशला वैशाली गणराज्य के प्रमुख चेटक की बहन थी । सिद्धार्थ क्षत्रिय कुण्डग्राम के अधिपति थे । आचारचूला (१५.२० ) तथा आवश्यकचूर्णि (पूर्वभाग ) के अनुसार महावीर के आदरणीय अग्रज का नाम नन्दिवर्धन था, जिनका विवाह चेटक की पुत्री ज्येष्ठा के साथ हुआ था, जो नन्दिनवर्धन की ममेरी बहन थी। उस समय ममेरे भाई- बहन में विवाह की प्रथित परम्परा को सामाजिक मूल्य प्राप्त था। महावीर के काका का नाम सुपार्श्व और बड़ी बहन का नाम सुदर्शना था । महावीर जब त्रिशला के गर्भ में आये, तब कुण्डग्राम की सम्पदाओं में वृद्धि हुई, इसलिए माता-पिता ने उनका नाम वर्धमान रखा। वे ज्ञात (ज्ञातृ) नामक क्षत्रियवंश में उत्पन्न हुए इसलिए वंश के आधार पर उन्हें ज्ञातृपुत्र ( णायपुत्त) भी कहा गया। Personal Use Only www.jainelibrary.org

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