Book Title: Klesh Rahit Jivan
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 28
________________ ४१ ४. फैमिलि आर्गेनाइजेशन हम किसलिए कहें? ठोकर लगेगी तो सीखेंगे। बच्चे पाँच वर्ष के हों तब तक कहने की छूट है और पाँच से सोलह वर्षवाले को कभी दो चपत मारनी भी पड़े। पर बीस वर्ष का जवान होने के बाद उसका नाम तक नहीं ले सकते, एक अक्षर भी नहीं बोल सकते, बोलना वह गुनाह कहलाएगा। नहीं तो किसी दिन बंदूक़ मार देगा। प्रश्नकर्ता : ये 'अनुसर्टिफाइड फादर' और 'मदर' बन गए हैं इसलिए यह पज़ल खड़ा हुआ है? दादाश्री : हाँ, नहीं तो बच्चे ऐसे होते ही नहीं, बच्चे कहे अनुसार चले ऐसे होते हैं। यह तो माँ-बाप ही ठिकाने बगैर के हैं। ज़मीन वैसी है, बीज वैसा है, माल बेकार है! ऊपर से कहते हैं कि मेरा बेटा महावीर होनेवाला है! महावीर तो होते होंगे? महावीर की माँ तो कैसी होती है? बाप जरा टेढ़ा-मेढ़ा हो तो चले पर माँ कैसी होती है? प्रश्नकर्ता : बच्चों को गढ़ने के लिए या संस्कार के लिए हमें कोई विचार ही नहीं करना चाहिए? दादाश्री : विचार करने में कोई परेशानी नहीं है। प्रश्नकर्ता : पढ़ाई तो स्कूल में होती है पर गढ़ने का क्या? दादाश्री : गढ़ना सुनार को सौंप देना चाहिए, उनके गढ़नेवाले होते हैं वे गढ़ेंगे। बेटा पंद्रह वर्ष का हो तब तक उसे हमें कहना चाहिए, तब तक हम जैसे हैं वैसा उसे गढ़ दें। फिर उसे उसकी पत्नी ही गढ़ देगी। यह गढ़ना नहीं आता, फिर भी लोग गढ़ते ही है न? इसलिए गढ़ाई अच्छी होती नहीं है। मूर्ति अच्छी बनती नहीं है। नाक ढाई इंच का होना चाहिए, वहाँ साढ़े चार इंच का कर देते हैं। फिर उसकी वाइफ आएगी तो काटकर ठीक करने जाएगी। फिर वह भी उसे काटेगा और कहेगा, 'आ जा।' फ़र्ज़ में नाटकीय रहो यह नाटक है! नाटक में बीवी-बच्चों को खुद के कायम के कर लें तो क्या चल सकेगा? हाँ, नाटक में बोलते हैं, वैसे बोलने में परेशानी क्लेश रहित जीवन नहीं है। यह मेरा बड़ा बेटा, शतायु था।' पर सब उपलक, सुपरफ्लुअस, नाटकीय। इन सबको सच्चा माना उसके ही प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं। यदि सच्चा न माना होता तो प्रतिक्रमण करने ही नहीं पडते, जहाँ सत्य मानने में आया वहाँ राग और द्वेष शुरू हो जाते हैं, और प्रतिक्रमण से ही मोक्ष है। ये दादाजी दिखाते हैं, उस आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान से मोक्ष है। यह संसार तो तायफ़ा (फजीता) है बिलकल, मज़ाक जैसा है। एक घंटे यदि बेटे के साथ लड़ें तो बेटा क्या कहेगा? 'आपको यहाँ रहना हो तो मैं नहीं रहूँगा।' बाप कहे, 'मैं तुझे जायदाद नहीं दूंगा।' तो बेटा कहे, 'आप नहीं देनेवाले कौन?' यह तो मार-ठोककर लें ऐसे हैं। अरे! कोर्ट में एक बेटे ने वकील से कहा कि, 'मेरे बाप की नाक कटे ऐसा करो तो मैं तुझे तीन सौ रुपये ज्यादा दूंगा।' बाप बेटे से कहता है कि, 'तुझे ऐसा जाना होता, तो जन्म होते ही तुझे मार डाला होता!' तब बेटा कहे कि, 'आपने मार नहीं डाला वही तो आश्चर्य है न!' ऐसा नाटक होनेवाला हो तो किस तरह मारोगे! ऐसे-ऐसे नाटक अनंत प्रकार के हो चुके हैं, अरे! सुनते ही कान के परदे फट जाएँ। अरे! इससे भी कई तरह-तरह का जग में हुआ है इसलिए चेतो जगत् से। अब 'खुद के' देश की ओर मुड़ो, 'स्वदेश' में चलो। परदेश में तो भूत ही भूत है। जहाँ जाओ वहाँ। कुतिया बच्चों को दूध पिलाती है वह ज़रूरी है, वह कोई उपकार नहीं करती है। भैंस का बछड़ा दो दिन भैंस का दूध नहीं पीए भैंस को बहुत दु:ख होता है। यह तो खुद की ग़रज़ से दूध पिलाते हैं। बाप बेटे को बड़ा करता है वह खुद की ग़रज़ से, उसमें नया क्या किया? वह तो फ़र्ज है। बच्चों के साथ 'ग्लास विद केर' प्रश्नकर्ता : दादा, घर में बेटे-बेटियाँ सुनते नहीं हैं, मैं खूब डाँटता हूँ फिर भी कोई असर नहीं होता। दादाश्री : यह रेलवे के पार्सल पर लेबल लगाया हुआ आपने देखा है? 'ग्लास विद केर', ऐसा होता है न? वैसे घर में भी 'ग्लास विद केर'

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