Book Title: Kirti Kaumudi me Prayukta Chanda Author(s): Ashok Kumar Singh Publisher: Z_Vijyanandsuri_Swargarohan_Shatabdi_Granth_012023.pdf View full book textPage 4
________________ यतीन्द्रसूरि स्मारकग्रन्थ - जैन आगम एवं साहित्य - कीर्तिकौमदी के नौवें एवं अंतिम सर्ग में 78 श्लोक हैं। पब्लिशिंग हाउस, अहमदाबाद, 1953, पृ. 6 इसमें भी प्रस्तुत काव्य के प्रधान छन्द हैं अनुष्टुप् का प्रयोग नहीं 3. कीर्तिकौमुदी, सिंधी, पृष्ठ 3 हुआ है अपितु इसमें अधिकांश श्लोक उपजाति में निबद्ध हैं। 4. केदार भट्ट, वृत्तरत्नाकर, सं. नृसिंह देव शास्त्री, मेहरचंद उपजाति से भिन्न आठ श्लोक (संख्या 2, 4, 15, 20, 24, 43, लछमन दास, दिल्ली - 6, 1971, पृष्ठ 61 45 एवं 65 इंद्रवज्रा में तथा 74 से 76 वसन्ततिलका में और 5. कीर्तिकौमुदी, सिंधी, पृष्ठ 6 ग्रन्थ के अंतिम दो श्लोक शार्दूलविक्रीडित छन्द में निबद्ध हैं। 6. वृत्तरत्नाकर शास्त्री, पृष्ठ 62 ___ इस प्रकार छन्द की दृष्टि से कीर्तिकौमदी का अध्ययन 7. कीर्तिकौमुदी, सिंधी पृष्ठ 6 करने पर ज्ञात होता है कि इसमें सर्वाधिक श्लोक अनुष्टुप् में 8. वृत्तरत्नाकर, शास्त्री, पृष्ठ 122 प्रणीत हैं। संख्या की दृष्टि से अनुष्टप के उपरांत कवि के प्रिय 9. कीर्तिकौमुदी, सिंधी, पृष्ठ 6 . छन्द रहे हैं उपजाति और वसन्ततिलका। 10. वृत्तरत्नाकर, शास्त्री, पृष्ठ 86 11. कीर्तिकौमुदी, सिंधी, पृष्ठ 6 अनुष्टुप् छन्द का अधिक प्रयोग इस तथ्य की ओर इंगित 12. वृत्तरत्नाकर, शास्त्री, पृष्ठ 106 करता है कि सोमेश्वर देव ने इसे महाकाव्य का रूप देना चाहा है। 13. कीर्तिकौमुदी, सिंधी, पृष्ठ 6 महाकाव्य के लक्षण के रूप में प्रदत्त कविराज विश्वनाथ 14. वृत्तरत्नाकर, शास्त्री, पृष्ठ 92 के निम्न दो श्लोक प्रासंगिक हैं - 15. कीर्तिकौमुदी, सिंधी, पृष्ठ 11 एकवृत्तमयैः पद्यैरवसानेऽन्यवृत्तकैः। 16. वृत्तरत्नाकर, शास्त्री, पृष्ठ 67 नातिस्वल्पा नातिदीर्घाः सर्गा अष्टाधिका इह॥६/३२०।। 17. कीर्तिकौमुदी, सिंधी, पृष्ठ 15 नानावृत्तमयः क्वापि सर्गः कश्चन् दृश्यते। 18. वृत्तरत्नाकर, शास्त्री, पृष्ठ 66 सर्गान्ते भाविसर्गस्य कथायाः सूचनं भवेत्।। 6/321 / / 19. कीर्तिकौमुदी, सिंधी, पृष्ठ 16 उपर्युक्त लक्षणों के अनुसार महाकाव्य की रचना प्राय: एक 20. वृत्तरत्नाकर, शास्त्री, पृष्ठ 73 छन्द में होती है। सर्ग के अंत में भिन्न छन्द प्रयुक्त होते हैं। साथ ही 21. कीर्तिकौमुदी, सिंधी, पृष्ठ 16 कोई सर्ग ऐसा भी होता है जिसमें प्रधान छन्द से भिन्न विविध छन्दों 22. वृत्तरत्नार, शास्त्री, पृष्ठ 99 का प्रयोग रहता है। ऐसे सर्गविशेष में प्रधान छन्द के प्रयोग का 23. कीर्तिकौमुदी, सिंधी, पृष्ठ 16 अभाव रहता है। इस कसौटी पर कीर्तिकौमुदी के छठे और नौवें 24. वृत्तरत्नाकर, शास्त्री, पृष्ठ 102 सर्ग खरे उतरते हैं। इन दोनों सों में अनुष्टुप् का प्रयोग नहीं हुआ है। 25. कीर्तिकौमुदी, सिंधी, पृष्ठ 25 इस प्रकार कहा जा सकता है कि सोमेश्वर देव ने 26. कविराज विश्वनाथ, साहित्यदर्पण, पाण्डरंग जावजी कीर्तिकौमुदी में छन्दों का प्रयोग एक निश्चित योजना के अनुसार निर्णयसागर प्रेस, बंबई 1936, पृष्ठ 372 किया है और वे इसमें सफल रहे हैं। 27. वृत्तरत्नाकर, शास्त्री, पृष्ठ 88 सन्दर्भ 28. कीर्तिकौमुदी, सिंधी, पृष्ठ२९ 29. वृत्तरत्नाकर, शास्त्री, पृष्ठ 75 1. सोमेश्वर देव, कीर्तिकौमुदी, सम्पा. मुनि पुण्यविजयजी, सिंधी 30. कीर्तिकौमुदी, सिंधी, पृष्ठ 33 जैनग्रंथमाला 32, भारतीय विद्याभवन, बंबई, 1961 31. साहित्यदर्पण, पाण्डुरंग, पृष्ठ 372-373 2. जी.के. भट्ट, आन मीटर्स एण्ड फिगर्स आव स्पीच, महाजन ameramananananandamahanatograinురురరరరరరరరరరర Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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