Book Title: Khartargaccha ki Mahan Vibhuti Davnvir Seth Motishah
Author(s): Chandmal Sipani
Publisher: Z_Manidhari_Jinchandrasuri_Ashtam_Shatabdi_Smruti_Granth_012019.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 1
________________ खरतरगच्छ को महान् विभूतिदानवीर सेठ मोतीशाह [ लेखक - चाँदमल सीपाणी ] मूर्तिमान धर्मरूप संघपति स्व० सेठ मोतीशाह ने धार्मिक संस्कार के बल पर प्राप्त की हुई लक्ष्मी का उपयोग रंग-राग में या संसार के क्षणभंगुर विलासों में नहीं करके, आत्म श्रेय के अपूर्व साधन सम, स्वपर का एकांत कल्याण करनेवाले मार्ग पर उपयोग किया । स्व० मोती शाह ने गृहस्थ जीवन में जैन शासन की प्रभावना के तथा जीवदया आदि के अनेक सुन्दर कार्य अपने अमुल्य मानव जीवन में पुरुषार्थ पूर्वक आत्मा का ऊर्ध्वकरण कर अपने जीवन को सफल किया । बम्बई के श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ तथा गोडीजी पार्श्वनाथ के मंदिरों को देखकर, सहसा मोतीशाह सेठ को धन्यवाद दिये बिना नहीं रहा जाता । इसके सिवा प्रति वर्ष कार्तिकी-चैत्री पूर्णिमा पर सम्पूर्ण बम्बई की जैन जनता भायखला के श्रीआदिनाथ मंदिर पर जाती है । यह देवालय व दादावाड़ी सेठ मोतीशाह ने ही बनवायै और इसके आसपास की विशाल जगह जैन समाज को दे गये । इसी प्रकार बम्बई पांजरापोल के आद्य प्रेरकआद्य संस्थापक और मुख्य दाता थे। उनका नाम आज भी लोग दयावीर और दानवीर के रूप में स्मरण करते हैं । पांजरापोल को तन, मन और धन से सहयोग देकर अमर आत्मा सेठ मोतीशाह आज भी जीवित हैं । उस विशाल पांजरापोल का प्रत्येक पत्थर और ईंट उनके जीते जागते नमूने हैं । केवल बम्बई में हो नहीं सम्पूर्ण भारतवर्ष के आबाल वृद्ध नर-नारी और विदेश से आनेवाले पर्यटक जिसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा करते हैं ऐसी श्री शत्रुज्य पर की Jain Education International "मोतीशाह सेठ' की ट्रॅक यहाँ याद आये बिना नहीं रहती । शाश्वतगिरि पर गहरी खाई को पूरकर, जिस मङ्गल धाम का निर्माण किया वह लाखों आत्माओं की आत्म कल्याण को जीवन सफल करने को लक्ष्मी मिली हो तो ऐसे प्रशस्त मार्ग पर खर्च करने को प्रेरणा देने को मौजूद है । इसको देखकर कहे बिना नहीं रहा जाता कि सेठ मोतीशाह चाहे देह रूप में न हो, परन्तु ऐसी अद्भुत कृति के सर्जकरूप में अमर है । सेठ मोतीशाह में दान का गुण असाधारण था । विक्रम को उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बम्बई के जैन समाज में जो जागृति व प्रभाव पैला उसमें उनके यश का बहुत बड़ा श्रेय इन्हीं को है । कर्जदार के रूप में जीवन यात्रा को शुरू करनेवाले व संवत् १८७१ में सारे कुटुम्ब में अकेले रह जानेवाले जिस व्यक्ति ने दानवीरता के जो अनेक शुभ कार्य किये हैं, उसकी राशि अट्ठाईस लाख से भी ऊपर जाती है। इसमें सबसे बड़ा काम जिनमें उन्होंने धन व्यय किया वह है पालीताना के शत्रुंजय पर्वत पर मोतीवसहि ट्रंक का काम । इस कार्य के निर्माण में ग्यारह लाख एवं उनकी आज्ञा इच्छा के अनुसार प्रतिष्ठा महोत्सव में सात लाख सात हजार मिलकर कुल अठारह लाख सात हजार खर्च हुआ। दो लाख रुपया बम्बई की पांजरापोल के लिये खर्च किये। इनके सिवा नीचे का वर्णन खास ध्यान देने लायक है । यह सब उनकी धर्म भावना, अहिंसामय हृदय और तत्कालीन जनता को आवश्यकताओं पर उनको तत्परता को बढ़ाते हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6