Book Title: Kavya me Adhyatma Author(s): Sushil Diwakar Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf View full book textPage 3
________________ सुशीलकुमार दिवाकर : काव्य में अध्यात्म : ८६३ बुधि अनुमान प्रमाण सुति, किये नीठि ठहराय । सुलभ गति परब्रह्म की, अलख लखी नहिं जाय । बिहारी ने निम्न पद्यांश में तो सांसारिक जीवों को परमात्मा की ओर सम्मुख करने में कितनी सफलतापूर्वक कलम की कला दिखाई है. भजन कहयो तासों भज्यो, भज्यो न एकी बार । दूर भजन जाते कहयो, सो तू भज्यो गंवार । इस प्रकार के गम्भीर पद्यों के आधार पर ही तो बिहारी बड़े घमण्ड से यह लिख पाये थे कि सत सैया के दोहरा, अरु नाविक के तीर, देखत में छोटे लगें, घाव करें गम्भीर । इस प्रसंग पर राष्ट्र कवि कबीर को कौन भूल सकता है ? उनके निम्न लिखित छन्द कामी और प्रगाढ़ संसारी के भी अंतर-चक्षु खोल देते हैं कस्तूरी कुण्डल बस मृग ह्ढे बन मांहि, ऐसे घट घट राम हैं दुनियां देखे नाहिं । पाखंडियों आदि को कबीर की फटकार चेतावनी देती है-- मुड मुडाये हरि मिले, सब कोई लेय मुंडाय, बार-बार के मूडते भेड़ न बैकुठ जाय । नाम भजो तो अब भजौ बहुरि भजोगे कब, हरिहर हरिहर रुखड़े इंधन हो गये सब । कहा चुनाव मेढ़िया लांबी, भीति उसारि, घर तो साढ़े तीन हथ, घनात पौने चारि । साधु भया तो क्या भया बोले नहीं विचार, हत पराई आतमा बांधि जीभ तरवार ॥ जहाँ हम शास्त्रों की बातों पर एकदम अविश्वास कर लेते हैं, वहां राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की तीर्थंकर महावीर के शरीर में दुग्ध सदृश रक्त पर श्रद्धासूचक काव्य देखिए यह तनु तोहै रक्तमांसमय, उसमें भरा हुआ है दुग्ध । बाल्यभाव से ही, जिन, यह जन, आ जाता है हुआ विमुग्ध । उनकी 'भारतभारती' में भारतीय आध्यात्मिक पतन और पाश्चात्य भौतिक आगमन पर जो हार्दिक दुःख छिपा है वह एक महान् सन्देश भारतीयों को दे रहा है. जयशंकरप्रसाद ने तो भारतीय-परम्परा में धर्म का कितना सुन्दर चित्रण किया है धर्म का ले लेकर जो नाम हुआ करती बलि, करदी बन्द । हमी ने दिया शांति सन्देश, सुखी होते देकर आनन्द । यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि । मिला था स्वर्ण भूमिको रत्न, शील की सिंहल को भी मृष्टि । इस प्रकार भारत ने अपने अध्यात्म-संदेश को देश-देशान्तर में प्रसारित करने का सक्रिय प्रयत्न किया था. हिन्दू-मुस्लिम अनक्य के दिनों में भी राष्ट्रकवि मैथिलीशरण ने क्या ही तर्कपूर्ण शब्दों में 'गुरुकुल' में स्नेह संवर्धन का प्रयत्न किया है : हिन्दू हो या मुसलमान, नीच रहेगा फिर भी नीच । मनुष्यता सबके भीतर है मान्य मही मण्डल के बीच । मानवता की पावन कल्पना को काव्य में उतारकर कवि ने बड़ा उपकार किया. दौलतराम कवि तो समूचे जीव-तत्त्व m D ... 7 . ता INORATE T MA TA. Jain EMENDSENENANENANANG NBAUNAKERANANANANANAnd www.jainelibrary.orgPage Navigation
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