Book Title: Karnatak Sahitya ki Prachin Parampara
Author(s): Vardhaman Parshwanath Shastri
Publisher: Z_Hajarimalmuni_Smruti_Granth_012040.pdf

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Page 5
________________ 860 : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-प्रन्थ : चतुर्थ अध्याय विभिन्न विषय में कर्नाटक साहित्य नृपतुंग के द्वारा विरचित 'कविराजमार्ग' लक्षणग्रंथों में कवियों के लिए राजमार्ग है, इसी प्रकार नागवर्म का छंदोदधि नामक छंदग्रंथ, दूसरे नागवर्मका कर्नाटक भाषा-भूषण (व्याकरण) काव्यावलोकन (अलंकार) वस्तुकोष (कोष) भट्टाकलंक का शब्दानुशासन (व्याकरण) केशीराज का (1260) मलिदर्पण (?) और साब्व के द्वारा विरचित रसरत्नाकर (रसविषयक) देवोत्तमका नानार्थ रत्नाकर (कोष) शृंगार कवि का कर्नाटकसंजीवन (कोष) आदि ग्रंथ कर्ना. टक कवियों की विविध विभाग की सेवाओं को व्यक्त करते हैं. इसी प्रकार वैद्यक, ज्योतिष और सामुद्रिकादि शास्त्रों की रचना कर्नाटक के कवियों ने की है. उनमें बहुत से ग्रंथ अनुपलब्ध हैं, कुछ उपलब्ध हैं. कल्याणकारक (वैद्यक) (सोमनाथ) हस्त्यायुर्वेद (शिवमारदेव) बालग्रहचिकित्सा (देवेन्द्रमुनि) मदनतिलक (चन्दराज) स्मरतंत्र (जन्न) आदि ग्रंथ भी उल्लेखनीय हैं. इसके अलावा ध्यानसारसमुच्चय आदि ग्रंथों की भी रचना हुई है. इसी प्रकार ज्योतिषसंबंधी रचनाओं में श्रीधराचार्य का जातकतिलक (1046) चाउण्डराय का लोकोपकारक (साम्द्रिक) जयबन्धुनन्दन का सूपशास्त्र, राजादित्यका गणितशास्त्र, अर्हद्दास के द्वारा विरचित शकुनशास्त्र आदि ग्रंथ भी उल्लेखनीय हैं. स्पष्ट है कि कर्नाटक प्रांतीय कवियों ने बहुत प्राचीन काल से ही साहित्य के विविध अंगों की सेवा कर महान् लोकोपकार किया है. बहुत से साहित्य नष्ट-भ्रष्ट हुए, अवशेष साहित्य भी विपुल प्रमाण में आज उपलब्ध हैं. कर्नाटक प्रांत में जैन साहित्य और जैन साहित्यकारों के नाम हरएक सम्प्रदाय वाले बहुत गौरव के साथ स्मरण करेंगे. ऐसी स्थिति का निर्माण इस परम्परा ने किया है. जैन समाज के लिए यह अभिमान की चीज है. परन्तु यदि हम इस पावन परम्परा की सुक्षा करने में समर्थ हुए तो ही हमारे लिए भूषण है. अन्यथा केवल बपौती का नाम लेकर जीनेवाली पुरुषार्थहीन सन्तति का ही स्थान हमारा है. Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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