Book Title: Karmwad ke Adharbhut Siddhant Author(s): Shivmuni Publisher: Z_Umravkunvarji_Diksha_Swarna_Jayanti_Smruti_Granth_012035.pdf View full book textPage 3
________________ कर्मवाद के आधारभूत सिद्धान्त | 23 कम करता है उसका वैसा ही फल मिलता है। कर्म स्वसम्बद्ध होता है, पर सम्बद्ध नहीं अर्थात् एक प्राणी पर दूसरे के कर्म फल का प्रभाव नहीं होता। अन्य दर्शनों की अपेक्षा जैन दर्शन में कर्म का विशेष रूप से विवेचन प्राप्त होता है। यही कारण है कि कर्मवाद जैन दर्शन का एक विशिष्ट अंग बन गया है। यहां जैन दर्शन में प्राप्त कर्मवाद के आधारभूत सिद्धान्त निम्नांकित रूप से उद्धृत किये जाते हैं 1. प्रत्येक क्रिया फलवती होती है। कोई भी क्रिया निष्फल नहीं होती है। 2. कर्म का फल प्राज नहीं मिलता तो भविष्य में निश्चित ही मिलता है। 3. जीव ही कर्म का कर्ता एवं कर्म का भोक्ता है। कर्म के फल को भोगने के लिए ही जीव एक भव से दूसरे भव में गमन करता है। कर्मबन्धन की इस परम्परा को तोडना भी जीव की शक्ति के अन्तर्गत है।। 4, व्यक्ति-व्यक्ति में भेद का कारण कर्म ही है। आत्मा की अनन्त शक्ति पर कर्मों का प्रावरण छाया हुआ है जिसके कारण हम अपने प्रापसे परिचित नहीं हो पा रहे हैं। इन कर्मों से हम तब ही मुक्त हो पायेंगे जब हमें अपनी शक्ति का पूरा परिचय और भरोसा हो जायेगा। 00 धम्मो दीयो संसार समुद्र में धर्म ही दीप है। Jain Education International For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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