Book Title: Karmtattva Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf View full book textPage 2
________________ २०६ जैन धर्म और दर्शन समर्थन भी करते हैं। इस तरह साम्प्रदायिक लोगों में पूर्वोक्त शास्त्रीय मान्यता का आदरणीय स्थान होने पर भी इस जगह कर्मशास्त्र और उसके मुख्य विषय कर्मतत्त्व के संबन्ध में एक दूसरी दृष्टि से भी विचार करना प्राप्त है । वह दृष्टि है ऐतिहासिक । एक तो जैन परम्परा में भी साम्प्रदायिक मानस के अलावा ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करने का युग कभी से प्रारम्भ हो गया है और दूसरे यह कि मुद्रण युग में प्रकाशित किये जानेवाले मूल तथा अनुवाद ग्रन्थ जैनों तक ही सीमित नहीं रहते। जैनतर भी उन्हें पढ़ते हैं। सम्पादक, लेखक, अनुवादक और प्रकाशक का ध्येय भी ऐसा रहता है कि वे प्रकाशित ग्रन्थ किस तरह अधिकाधिक प्रमाण में जैनेतर पाठकों के हाथ में पहुँचें । कहने की शायद ही जरूरत हो कि जैनेतर पाठक साम्प्रदायिक हो नहीं सकते । अतएव कर्मतत्त्व और कर्मशास्त्र के बारे में हम साम्प्रदायिक दृष्टि से कितना ही क्यों न सोचे और लिखें फिर भी जब तक उसके बारे में हम ऐतिहासिक दृष्टि से विचार न करेंगे तब तक हमारा मल एवं अनुवाद प्रकाशन का उद्देश्य ठीक-ठीक सिद्ध हो नहीं सकता। साम्प्रदायिक मान्यताओं के स्थान में ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करने के पक्ष में और भी प्रबल दलीलें हैं । पहली तो यह कि अब धीरे-धीरे कर्मविषयक जैन वाङ्मय का प्रवेश कालिजों के पाठ्यक्रम में भी हुआ है जहाँ का वातावरण असाम्प्रदायिक होता है। दूसरी दलील यह है कि अब साम्प्रदायिक वाङ्मय सम्प्रदाय की सीमा लाँधकर दूर-दूर तक पहुँचने लगा है। यहाँ तक कि जर्मन विद्वान् ग्लेझनप जो 'जैनिस्मस्'--जैनदर्शन जैसी सर्वसंग्राहक पुस्तक का प्रसिद्ध लेखक है, उसने तो श्वेताम्बरीय कर्मग्रन्थों का जर्मन भाषा में उल्था भी कभी का कर दिया है और वह उसी विषय में पी-एच० डी० भी हुआ है। अतएव में इस जगह थोड़ी बहुत कमतत्त्व और कर्मशास्त्र संबन्धी चर्चा ऐतिहासिक दृष्टि से करना चाहता हूँ। ___ मैंने अभी तक जो कुछ वैदिक और अवैदिक श्रुत तथा मार्ग का अवलोकन किया है और उस पर जो थोड़ा बहुत विचार किया है उसके अाधार पर मेरी राय में कर्मतत्त्व से संबन्ध रखनेवालो नीचे लिखी वस्तुस्थिति खास तौर से फलित होती है जिसके अनुसार कर्मतत्त्वविचारक सब परम्पराओं की शृंखला ऐतिहासिक क्रम से सुसङ्गत हो सकती है । __ पहिला प्रश्न कर्मतत्त्व मानना या नहीं और मानना तो किस आधार पर, यह था । एक पक्ष ऐसा था जो काम और उसके साधनरूप अर्थ के सिवाय अन्य कोई पुरुषार्थ मानता न था। उसकी दृष्टि में इहलोक ही पुरुषार्थ था । अतएव वह ऐसा कोई कर्मतत्त्व मानने के लिए बाधित न था जो अच्छे-बुरे जन्मान्तर या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7