Book Title: Karm evam Leshya
Author(s): Chandmal Karnavat
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 3
________________ कर्म एवं लेश्या ] [ ११५ गया है-'रागोयदोसो वियकम्मवियम्' ये राग और द्वेष की वृत्तियाँ योग का ही रूप हैं । और कषायों को समन्वित किये हुए हैं । लेश्याओं के प्रकार और कर्मबन्ध : लेश्याएँ छः हैं-कृष्ण लेश्या, नील लेश्या, कापोत लेश्या, तेजो लेश्या, पद्म लेश्या एवं शुक्ल लेश्या । इनमें प्रथम तीन अशुभ और अन्तिम तीन शुभ मानी गयी हैं। (१) कृष्ण लेश्या-काजल के समान वाले वर्ण के इस लेश्या के पुद्गलों का सम्बन्ध होने पर आत्मा में ऐसे परिणाम उत्पन्न होते हैं जिनसे आत्मा मिथ्यात्व आदि पाँच प्रास्रवों में प्रवृत्ति करती, तीन गुप्ति से ‘अगुप्त रहती, छः काय की हिंसा करती है। वह क्षुद्र तथा कठोर स्वभावी होकर गुणदोष का विचार किये बिना क्रूर कर्म करती रहती है। (२) नील लेश्या-नीले रंग के इस लेश्या के पुद्गलों का सम्बन्ध होने पर आत्मा में ऐसा परिणाम उत्पन्न होता है कि जिससे ईर्ष्या, माया, कपट, निर्लज्जता, लोभ, द्वेष तथा क्रोध आदि के भाव जग जाते हैं। ऐसी आत्मा तप और सम्यग्ज्ञान से शून्य होती है। (३) कापोत लेश्या-कबूतर के समवर्णी पुद्गलों के संयोग से आत्मा में बोलने, विचारने व कार्य करने में वक्रता उत्पन्न होती है। नास्तिक बनकर आत्मा अनार्य प्रवृत्ति करते हुए अपने दोषों को ढंकती है, दूसरों की उन्नति नहीं सह सकती। चोरी आदि के कर्म करती है। उक्त तीनों लेश्याएँ अशुभ होने से आत्मा की दुर्गति का कारण बनती हैं । ऐसे जीव नरक और तिर्यंच गति में जाते हैं यदि जीवन के अन्तिम काल में उनके परिणाम इतने अशुभ हों। (४) तेजो लेश्या-इस लेश्या के सम्बन्ध से आत्मा में ऐसे परिणाम उत्पन्न होते हैं कि आत्मा अभिमान का त्याग कर मन, वचन और कर्म से नम्र बन जाती है । गुरुजनों का विनय करती, इन्द्रियों पर विजय पाती हुई पापों से भयभीत होती है और तप-संयम में लगी रहती है। (५) पद्म लेश्या-इस लेश्या में स्थित आत्मा क्रोधादि कषायों को मन्द कर देती है । मितभाषी, सौम्य और जितेन्द्रिय बनकर अशुभ प्रवृत्तियों को रोक देती है। (६) शुक्ल लेश्या- इस लेश्या के प्रभाव स्वरूप आत्मा आतं, रौद्र, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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