Book Title: Karm aur Samajik Sandarbh
Author(s): Mahavir Sharan Jain
Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf

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Page 7
________________ कर्म का सामाजिक संदर्भ ] [ २६१ को जोड़ लेने के बाद भी मानसिक दृष्टि से अशान्त हैं। तनावों का दायरा बढ़ता जा रहा है । इन तनावों को दूर करने के लिए व्यक्ति अपने को भुलाता है । मद्यपान करता है, चरस, भाँग का सेवन करता है। उनसे भी जब नशा नहीं होता तो 'एल. एस. डी.', 'हैरा', 'ऐकीड्रीन', 'वैल्यिम', 'मैनड्रेक्स' लेता है। इनसे भी मानसिक थकान नहीं मिटती तो 'हेरोइन' यानी 'एच' लेता है। इन्हीं प्रक्रियाओं से गुजरकर ऐसे मुकाम में पहुँच जाता है जहाँ चेतना अंधेरी कोठरी में बन्द हो जाती है, पुरुषार्थ थक जाता है। अपराध प्रवृत्तियों के शिकार मानसिक रोगियों की जिन्दगी में फिर प्रकाश की कोई किरण कभी रोशनी नहीं फैलाती। कार्ल मार्क्स ने शोषक और शोषित-इस वर्ग संघर्ष को उभारकर तथा इतिहास की अर्थ परक व्याख्या के द्वारा रोटी के प्रश्न को मानवीय चेतना का केन्द्र बिन्दु बनाकर प्रस्थापित किया । उत्पादन के साधनों पर किसका अधिकार है, उत्पादन की प्रक्रिया में रत लोगों के आपसी सम्बन्ध कैसे हैं तथा उत्पादित भौतिक सम्पदा का लाभ एवं उसके वितरण का क्या प्रबन्ध है आदि तथ्यों पर मार्क्स तथा उसकी विचारणा से प्रभावित अन्य व्यक्तियों ने विचार किया। मार्क्सवाद की विचारधारा का प्रभाव एशिया, अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका के देशों में राष्ट्रीय जनवादी क्रान्तियों, अन्तर्राष्ट्रीय समाजवादी क्रान्ति के संघर्षों, विभिन्न देशों में व्यापक अाम जनवादी मोर्चों के संगठनों तथा समाजवादी देशों में उत्पादन के साधनों पर सार्वजनिक स्वामित्व की प्रणाली में पहचाना जा सकता है । साधनहीन अथवा शोषकों का चिन्तन भी बदला है । वे अपनी जिन्दगी की मुसीबतों का कारण व्यवस्था को मानकर समाज एवं राज्य से साधनों की मांग कर रहे हैं। यह बात भी आज स्पष्ट है कि राज्य के कल्याणकारी कार्यक्रमों के क्रियान्वयन द्वारा बहुत सी मुसीबतों एवं कष्टों को दूर किया जा सकता है । मगर व्यवस्था के द्वारा व्यक्ति की मानसिकता को सर्वथा नहीं बदला जा सकता । वस्तुतः केवल भौतिक दृष्टि से विचार करना भी एकांगिता है । इसके अतिरिक्त पूँजीवादी व्यवस्था को बदलने मात्र से खतरे समाप्त हो ही जावेंगे—यह भी निश्चित नहीं है । सार्वजनिक स्वामित्व के नाम पर राजकीय पूंजीवाद (State Capitalism) के स्थापित हो जाने पर क्या उसके चारित्रिक स्वरूप में परिवर्तन आता है ? यह कहा जाता है कि पूजीवादी व्यवस्था में सम्पत्ति पर पूजीपति वर्ग का निजी स्वामित्व एवं नियंत्रण रहता है । राजकीय पूंजीवाद में पूजीवादी व्यवस्था में ही राष्ट्र एवं मेहनतकश वर्गों के हित में इसके उपयोग की सम्भावनायें पैदा होती हैं। मगर प्रश्न है कि सर्वहारा वर्ग की क्रान्ति के नाम पर यदि दल के अधिकारी सत्ता पर कब्जा कर लेते हैं तो क्या पार्टी-अधिनायकवाद के छद्मवेश में सत्ता पर इनकी तानाशाही स्थापित नहीं हो जाती तथा यदि इन्हीं के हाथों Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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