Book Title: Kaisa ho Hamara Ahar
Author(s): Rajkumar Jain
Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf

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Page 9
________________ FOR ५९८ अधिकांशतः देखा गया है कि मांसाहारी व्यक्ति के लिए अल्कोहल जैसी मादक वस्तुओं का सेवन अनिवार्य होता है। क्योंकि जो मांस खाया जाता है उसे पचाने के लिए या तो अधिक मात्रा में नमक का सेवन किया जाय या फिर अल्कोहल का सेवन किया जाए। अल्कोहल का सेवन यद्यपि मांस पचाने में सहायक होता है, किन्तु दूसरी ओर वृक्कों (गुर्दे की क्रिया को प्रभावित कर उनमें विकृति उत्पन्न करता है। अल्कोहल के रूप में प्रयुक्त मंदिरा का सीधा प्रभाव यकृत फुफ्फुसों पर पड़ता है। परिणामतः उनमें विकृति उत्पन्न होने की सम्भावना बढ़ जाती है। साथ ही रक्तचाप बढ़ जाता है जो अन्ततः हृदय और उसकी क्रियाओं को प्रभावित किए बिना नहीं रहता। मांसाहार का समर्थन करने वाले कुछ आहार शास्त्रियों का यह मानना है कि मांस का सूप मनुष्य के लिए शक्ति का स्रोत होता है। किन्तु दूसरी ओर वे इस तथ्य को नजर अन्दाज कर जाते हैं कि इसमें विषैले तत्वों की भी भरमार होती है जो मनुष्यों के शरीर में स्वतः निर्मित रोग प्रतिरोध क्षमता (इम्युनिटी) को कम करती है। यह पाया गया है कि शारीरिक सहन शक्ति एवं रोगों का प्रतिरोध करने की शक्ति मांसाहारियों की अपेक्षा शाकाहारियों में अधिक होती है। वैसे भी सामान्यतः मांस में ऐसा कोई विशेष तत्व नहीं होता है जो शाकाहार में नहीं पाया जाता हो। कुछ परीक्षणों से यह भी पुष्टि हुई है कि लगातार मांस का सेवन करने वाले व्यक्तियों के पेट में अपचित मांस के रह जाने से पेट में सड़न पैदा होती है जो अनेक उदर विकारों एवं रोगों को जन्म देती है। इस सम्बन्ध में डॉ. जे. एच. कैलाग द्वारा मांसाहार के विषय में की गई खोज और उसके परिणाम स्वरूप निकाला गया निष्कर्ष महत्वपूर्ण है कि मांस के प्रति मनुष्य की रुचि अति सामान्य (नार्मल होती है और मांस खाने से उच्च रक्तचाप, वृक्ष सम्बन्धी रोग, आन्त्रपुच्छ शोध ( अपेण्डिसाइटिस), कैंसर, पेट के जख्म, आंत्रशोध, पित्ताशय की पथरी, कुष्ठ रोग आदि उत्पन्न होने की प्रबल सम्भावना रहती है। विभिन्न वैज्ञानिक खोजों ने तथा आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि मांसाहारी मनुष्य की अपेक्षा शाकाहारी मनुष्य हृदय विकृति, गुर्दे की बीमारी, विभिन्न चर्मरोगों, दांतों की बीमारियों तथा अन्य अनेक रोगों विशेषतः उदर रोगों से बचे रहते हैं। नोबेल पुरस्कार प्राप्तकर्त्ता डॉ. माइफल ब्राउन ने मांसाहार के सभी वर्गों का विश्लेषण किया है। उनका कथन है कि अण्डा कोलेस्ट्रोल रसायन उत्पन्न करता है जिससे रक्तचाप और हृदय रोग उत्पन्न होने की संभावना बढ़ती है और कई प्रकार के रक्त विकार उठ खड़े होते हैं। मांस के बारे में उनका कथन है कि इसे खाने वाले अपने पेट की स्वस्थता गंवा बैठते हैं और मानसिक संतुलन की दृष्टि से भी घाटे में रहते हैं। मछली की संरचना भी तालमेल Rivate उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि स्मृति ग्रन्थ नहीं खाली उसके द्वारा जो कुछ शरीर को मिलता है उसमें विजातीय तत्वों का बाहुल्य रहता है, जिसके कारण रोग निरोधक क्षमता में कमी हो जाती है। यह पाया गया है कि जो लोग विभिन्न रोगों से ग्रसित होते हैं उनमें शाकाहारियों की अपेक्षा मांसाहारियों की संख्या अधिक होती है। 20 वैसे १९वीं सदी के अन्त तक स्वास्थ्य शास्त्रियों की यह धारणा जबर्दस्त रूप से रही है कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए मांस का सेवन अत्यन्त आवश्यक है। यही कारण है कि बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ से मांसाहार को प्रोत्साहन मिला। इस धारणा के विरुद्ध बीसवीं शताब्दी में इटली के आहार विशेषज्ञों ने मनुष्य के आहार से मांस का बहिष्कार करने की सलाह दी। इसी सन्दर्भ में जोहंस हापकिंग्स इंस्टीट्यूट के प्रो. ई. वी. मैक्कलम ने कहा कि यदि मांसाहारी मांस खाना छोड़ दें तो कुछ समय में उनका स्वास्थ्य अधिक अच्छा हो जायगा। इसी प्रकार पश्चिम जर्मनी के हैजेजवर्ग स्थित कैंसर अनुसंधान केन्द्र में किए गए अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष के आधार पर बतलाया गया है कि शाकाहारी व्यक्तियों की तुलना में मांस का भोजन करने वाले व्यक्तियों को दिल के दौरे तथा रक्त परिभ्रमण सम्बन्धी घातक रोग अपेक्षाकृत अधिक होते हैं। संस्थान ने अपने अध्ययन में यह भी पाया है कि शाक-सब्जी खाने वाले रोगों को कैंसर होने का खतरा कम होता है। उक्त संस्थान में लगातार पाँच वर्ष तक लगभग दो हजार शाकाहारियों पर परीक्षण किए गए। शोधकर्ताओं ने पाया कि एक तिहाई भाग की मृत्युदर में कमी हुई जो शाकाहारी व्यक्ति अपने दैनिक भोजन में नियमित रूप से दूध, मक्खन और पनीर आदि साथ लेते हैं तो उन्हें अन्य पदार्थों की आवश्यकता नहीं रहती है। उनका भोजन पूर्ण होता है और उन्हें कुपोषण की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है। इस प्रकार परीक्षणों, शोधों एवं तथ्यों से स्पष्ट है कि मांस की अपेक्षा शाकाहारी भोजन अधिक अच्छा, पौष्टिक, विटामिनों से भरपूर तथा हानिरहित है। आहार सेवन क्रम में विशेषज्ञों ने लोगों को पोषण सम्बन्धी कुछ परामर्श भी दिए हैं। उन्होंने लोगों से आग्रह किया है कि यथासंभव खाद्य पदार्थों को प्राकृतिक रूप में ही प्रयोग करें घर फैक्टरी आदि में भोजन को विभिन्न साधनों से प्रोसेस करने का अर्थ है भोजन की पोषण शक्ति घटाना तथा भोजन में हानिकारक पदार्थों का समावेश करना। उनके अनुसार भोजन में सामान्य और आसानी से उपलब्धता वाले खाद्य पदार्थों का ही प्रयोग करना चाहिए। मंहगे आहार या भोजन से अधिक पोषण की अपेक्षा नहीं रखना चाहिए। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार भोजन का पर्याप्त प्रभाव मनुष्य के मनोभावों और मानसिक क्रियाओं पर भी पड़ता है। इस बात के प्रमाण पाए गए हैं कि निरामिष भोजन करने वाले व्यक्ति अपेक्षाकृत शांत, सरल और मधुर स्वभाव के होते हैं, जबकि Montana

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