Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 18
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७३०१६. (+) उपदेश पच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बिकानेर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १५४४०). उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७८, आदि: निठ निठ नर भवे लहो; अंति: रतनचंद० दियो उपदेश,
गाथा-२५. ७३०१७. (+#) सूर्यदेव सिलोको व चतुर्विंशतिजिनपरिवार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४४०). १. पे. नाम. सूर्यदेव सिलोको, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण..
सूर्य सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामण करुजी; अंति: नही कोइ थारै जी तोलै, गाथा-१७. २. पे. नाम. चतुर्विंशति स्तवन परिवार, पृ. १आ, संपूर्ण.
२४ जिन परिवार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीस तीर्थंकरनो; अंति: संघनै प्रणमुसही, गाथा-६. ७३०१९. (#) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पेज१४४=१, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४४११, १२४१०).
पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर पट्टे; अंति: श्रीविजयधर्मसूरि. ७३०२०. मौनएकादशी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १२४३६).
मौनएकादशीपर्व कथा-बालावबोध, म. रंगविजय, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरजिन प्रति; अंति: (-), (पू.वि. मात्र
प्रथम पत्र है., "१५० कल्याणक सुनने के लिये माघ मास के एकादशी दिन" के प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७३०२१. (+#) जिनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२४११, ८x२४).
२० विहरमान अतीत, अनागत, वर्तमान तीर्थंकरादि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीकेवलज्ञानी १; अंति: श्रीअजितवीर्य २०. ७३०२२. १८ नातरा सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ., (२५४१२, १०४३३).
१८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलोने प्रणमुरे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक
७३०२३. उत्तराध्ययनसूत्र कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२२४११.५, १३४३०).
उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह", मा.गु., गद्य, आदि: पहला अध्ययननी ३ गाथा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक
द्वारा अपूर्ण., चंडरुद्राचार्य कथा अपूर्ण तक लिखा है.) ७३०२४. (#) खंधकमुनि चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२२४१२, १३४२९).
खंधकमुनि चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत सिध आचारज; अंति: हो करज्यो सहु कोय, ढाल-४. ७३०२५. (#) श्रावकाचार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८३३, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सोजतनगर, प्रले.ऋ. न्याय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, २०४४२).
श्रावकाचार सज्झाय, रा., पद्य, आदि: भगवते धर्म भाखीयो; अंति: आछो जाण संभायोजी, ढाल-२, गाथा-१७३. ७३०२६. (#) चंदनबाला स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. मु. शांतिनाथ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३४).. चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुमारी चंदनबाला; अंति: सीस कुंवर करजोडी रे,
गाथा-१३. ७३०२७. महावीरजिन स्तव व श्लोक, अपूर्ण, वि. १७६५, कार्तिक शुक्ल, १५, रविवार, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,
ले.स्थल. देवसूरी, प्रले. मु. धर्मराज (गुरु वा. हर्षराज, अंचलगच्छ); गुपि. वा. हर्षराज (गुरु वा. धनराज, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १४४४०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है.
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