Book Title: Jivraksha Srushti Santulan ke liye Avashyak Author(s): Hukamchand Parekh Publisher: Z_Rajendrasuri_Janma_Sardh_Shatabdi_Granth_012039.pdf View full book textPage 1
________________ जीव रक्षा : सृष्टि-संतुलन के लिए आवश्यक आज जबकि विश्व की आधे से अधिक आबादी तनाव, संत्रास, कलह, हिंसा और रक्तपात का जीवन जी रही है; अहिंसा, सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य और शाकाहार की चर्चा कुछ लोग बेहद अप्रासंगिक और गयी-गुजरी समझने, किन्तु वस्तुतः बात ऐसी है नहीं क्योंकि यह बहुत स्पष्ट है कि हिंसा, प्रतिकार, झूठ, असंयम, युद्ध, शोषण इत्यादि किसी सभ्य समाज के मूल आधार नहीं बन सकते। यह कहना कभी भी संभव नहीं हो पायेगा कि जो लड़ रहा है, बैर भुना रहा है, कलह कर रहा है, हिंसा कर रहा है, झूठ बोल रहा है, या मांसाहार कर रहा है, अन्यों को मुश्किलों और तक़लीफों में डाल रहा है, नितांत क्रूर और दुष्ट है, वह सभ्य है । सभ्य लोग करें वैसा लेकिन वे कह नहीं सकते कि किसी सभ्य मनुष्य की पहचान जीवन के उक्त बर्बर मूल्य हो सकते हैं। बहुत कठिन होगा ऐसा सब तय कर पाना । भारत एक ऐसा देश है, जहाँ विविधता है, और जहाँ सब प्रकार की मान्यताओं और धारणाओं वाले लोग एक साथ निवास करते हैं। यहाँ अनेक वेशभूषाएँ हैं, नाना भाषाएँ हैं, किस्म-किस्म के खानपान हैं, फिर भी इस बिन्दु पर सब एक मत हैं कि गांधी ने स्वराज्य के लिए जो अहिंसक रास्ता अपनाया था, वह सही था; सत्याग्रह में अमोघ शक्ति है, गौतम बुद्ध की करुणा अपराजिता थी, महाभारत के भयानक रक्तपात के बाद लगा था कि युद्ध एक बर्बर और गहित कर्म है और उसे दुनिया से अविलम्ब विदा किया जाना चाहिये। वह हुआ नहीं, यह जुदा बात है; किन्तु मनुष्य ने अनुभव किया यह सच है । सती प्रथा का बन्द होना और देवी-देवताओं की वेदी पर भैंसों बकरों, मुर्गों (यहाँ तक कि जिन्दा आदमी तक ) का चढ़ाया जाना रुकना (यों इक्की -दुक्की घटनाएँ आज भी अखबारों में पढ़ने को मिल जाती हैं) कुछ सभ्य क़िस्म के मंगल संकेत हैं। भारतीय धर्म शताब्दियों से अहिंसा और करुणा को मानवीय जीवन का शृंगार बनाये चले आ रहे हैं। असल में जब से आदमी ने १८४ Jain Education International हुकमचन्द पारेख खेती करना सीखा है, बाग-बगीचे लगाना जाना है, जीवन में सौन्दर्य की प्रतिष्ठित किया है, तब से उसके हिंसक बर्जर कृत्य कुछ कम हुए हैं; और ऐसी घटनाओं और कार्यों को बल मिला है। जो अहिंसक हैं, मानवीय है, रक्तपात जहाँ अनुपस्थित है। यदि हम भारतीय संत साहित्य का अध्ययन अवलोकन करें तो देखेंगे कि वहाँ मांसाहार और हिंसा को निकृष्ट और घृणित कृत्य बताया गया है। वहां मनुष्य और पशु-पक्षी सब एक ही ईश्वर की सृष्टि माने गये हैं, और अहिंसा को ही जीवन का सर्वोपरि आदर्श प्रतिपादित किया गया है। जैनों ने तो वनस्पति-मात्र में स्पन्दन माना है, और इसीलिए हर धड़कन के सम्मान की बात जैनधर्म में कही गयी है। किसी अंग्रेज कवि ने कहा है कि, “जब आदमी एक चींटी भी नहीं घड़ सकता तो उसे क्या अधिकार है कि जीवराशि का हनन करे ।" सच भी है कि आप मकान बना सकते हैं, उसे गिरायें, धराशायी करें किन्तु जब आप एक धड़कन भी नहीं सिरज सकते तब फिर आपको हक़ नहीं है कि किसी के प्राण । जिस भारत में धर्म के नाम पर कभी भीषण रक्तपात हुआ है, उसी भारत में ऐसे ऋषि महर्षि भी हुए जिनकी समाधिस्थ मुद्रा से प्रभावित सिंह-गौ एक घाट पानी पीते रहे। इतिहास बताता है कि हमारे कृषि नीवार-भोगी थे अर्थात् ऐसा अनाज खाते थे, जो बिना बोये पैदा होता था । अहिंसा की यह सर्वश्रेष्ठ भारतीय अभिव्यक्ति भी कुछ लोग अहिंसा को कायरता का पर्याय मानते हैं, किंतु यह भूल है अहिंसा का स्पष्ट अर्थ है प्रमादपूर्वक किसी के प्राणों की हानि करना । गोवध-बंदी को लेकर जो भी कदम उठाये जाने की पहल होती है, हुई है; उसका सीधा मतलब होता है देश की अपार पशु- संपदा की रक्षा । पशु और पेड़-पौधे सिी भी देश की बहुमूल्य संपदाएं कही जाती हैं। इनकी रक्षा हर देशवासी का कर्त्तव्य माना जाता है। कहा प्रायः यही जाता है कि व्यापक वन -समारोह होने चाहिये और वृक्ष लगाये जाने चाहिये, किंतु हम करते इसके विपरीत राजेन्द्र- ज्योति For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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