Book Title: Jivan me Karm Siddhant ki Upayogita Author(s): Kalyanmal Jain Publisher: Z_Jinvani_Karmsiddhant_Visheshank_003842.pdf View full book textPage 6
________________ 144 ] [ कर्म-सिद्धान्त मुझे न कोई उठाने वाला है और न कोई गिराने वाला। मैं स्वयं अपनी शक्ति से उठता हूँ तथा अपनी शक्ति के ह्रास से गिरता हूँ। अपने जीवन में मनुष्य कुछ जैसा और जितना पाता है, वह सब कुछ उसकी बोई हुई खेती का अच्छा या बुरा फल है। अतः जीवन में हताश, निराश तथा दीन-हीन बनने की आवश्यकता नहीं है / यही कर्म सिद्धान्त की उपयोगिता है। मानव जीवन के दैनिक व्यवहार में कर्म सिद्धान्त कितना उपयोगी है, यह भी विचारणीय प्रश्न है। कर्म-शास्त्र के विद्वानों ने अपने युग में इस समस्या पर विचार किया है। हम अपने दैनिक जीवन में प्रतिदिन देखते हैं और अनुभव करते हैं तो महसूस होता है कि कभी-कभी तो जीवन में सुख के सुन्दर बादल छा जाते हैं और कभी-कभी दुःख की घनघोर घटाएँ सामने विकराल स्वरूप धारण किये हुए खड़ी हैं। उस समय प्रतीत होता है कि यह जीवन विभिन्न बाधाओं, दुःख और विविध प्रकार के कष्टों से भरा पड़ा है, जिनके आने पर हम घबरा जाते हैं तथा हमारी बुद्धि कुंठित हो जाती है। मानव जीवन की वह घड़ी कितनी विकट होती है। जब एक ओर मनुष्य को उसकी बाहरी परिस्थितियां परेशान करती हैं और दूसरी ओर उसके हृदय की व्याकुलता बढ़ जाती है। इस प्रकार की परिस्थिति में ज्ञानी और पंडित कहलाने वाले व्यक्ति भी अपने गन्तव्य मार्ग में भटक जाते हैं। हताश और निराश होकर अपने दुःख, कष्ट और क्लेश के लिए दूसरों को कोसने लगते हैं। वे उस समय भूल जाते हैं कि वास्तव में उपादान कारण क्या है, उनकी दृष्टि केवल बाह्य निमित्त पर जाकर टिकती है। इस प्रकार के विषय प्रसंग पर वस्तुतः कर्म सिद्धान्त ही हमारे लक्ष्य के पथ को आलौकित करता है और मार्ग से भटकती हुई आत्मा को पुनः सन्मार्ग पर ला सकता है। सुख और दुःख का मूल कारण अपना कर्म ही है / वृक्ष का जैसे मूल कारण बीज ही है। वैसे ही मनुष्य के भौतिक जीवन का मूल कारण उसका अपना कर्म ही है। सुख-दुःख के इस कार्य-कारण भाव को समझकर कर्म सिद्धान्त मनुष्य को आकुलता एवं व्याकुलता के गहन गर्त से निकाल कर जीवन के विकास की ओर चलने को प्रेरित करता है। इस प्रकार कर्म सिद्धान्त आत्मा को निराशा के झंझावात से बचाकर कष्ट एवं क्लेश सहने की शक्ति प्रदान करता है / संकट के समय में भी बुद्धि को स्थिर रखने का दिव्य सन्देश देता है। कर्म सिद्धान्त में विश्वास रखने वाला व्यक्ति यह विचार करता है कि जीवन में जो अनुकूलता एवं प्रतिकूलता आती है, उसका उत्पन्नकर्ता मैं स्वयं हूँ। फलत: उसका अनुकूल या प्रतिकूल परिणाम भी मुझे ही भोगना चाहिये। मह दृष्टि मानव जीवन को शान्त, सम्पन्न और आनन्दमय बना देती है जिससे मानव आशा एवं स्फूर्ति के साथ अपने जीवन का विकास करता हुआ आगे बढ़ जाता है / यही जीवन में कर्म सिद्धान्त की उपयोगिता है।। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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