Book Title: Jivan ke Parivesh me Parivartan aur Shiksha Author(s): Sagarmal Jain, Bijavat Publisher: Z_Ashtdashi_012049.pdf View full book textPage 1
________________ सागरमल जैन बीजावत वाले साइन बोर्ड। सड़क के दायें, बायें तो ठीक ऊपर और नीचे की जमीन पर भी विज्ञापन के इश्तिहार होंगे। ४. उन नवयुवकों का पहनावा, ठहाके, बोली-चाली सब कुछ नया-सा होगा। कुल मिलाकर जीवन-यापन की हमारी अग्रिमताएं भी बदल चुकी हैं। पहले हमारा अधिकांश खर्च खाना-भोजन, वस्त्र और मकान पर होता था। आज इन पर होने वाला खर्च बढ़ा नहीं है परन्तु खर्च के नए माध्यम आ गये हैं जिनका व्यय हमारी मौलिक आवश्यकताओं से भी अधिक है। शिक्षा डोनेशन (चंदा या उत्कोच) की राशि पर किसी अच्छे नाम वाले, अंग्रेजी माध्यम शालाओं में प्रवेश पाना, मोबाईल, कम्प्यूटर, प्रिंटर्स, होडिंग का खर्च, क्लब जीवन, पर्वतीय रिझेटस में प्रतिवर्ष घूमने जाना आदि और ऐसा की जिसका कहीं अन्त नहीं है। ५. तकनीकी विकास से आगे आने वाले समय में हमारे परिवेश में क्या परिवर्तन आयेगा, इसकी तो कल्पना ही कठिन है। तकनीकी सुविधाओं ने हमारे हाथ से काम छीन लिया है। जीवन के परिवेश में भगवान ने हाथ दिये हैं तो हाथ से परिश्रम कर अपनी आजीविका कमाऊंगा, यह सिद्धांत आज अव्यावहारिक होता जा रहा है। परिवर्तन और शिक्षा आज पोस्ट आफिस काम न होने से बैंक या साधारण उपभोक्ता परिवर्तन संसार का नियम है परन्तु आज जो परिवर्तन स्टोर में बदले जाने की बात आ रही है। बड़े शहरों में परिवहन संसार में हमारे जीवन-क्रम में हुआ है वह अभूतपूर्व है तथा उस के लिए किसी समय एक मात्र साधन था सरकारी बसें आज वे परिवर्तन की गति अति, अति तेज अकल्पनीय है। निकट भूत खाली जा रही हैं। उनमें काम करने वाले ड्रायवरों और के जीवन से आज का जीवन बदल गया है और इतना बदल कण्डक्टरों का क्या होगा? किसी जमाने में सप्ताह में ७ दिन गया है मानो कल के भूत से आज के वर्तमान का कोई संबंध काम करना जरुरी था। कहते थे कि रोज खाना चाहिये तो रोज ही नहीं है। वैज्ञानिक आविष्कारों ने सब कछ तो बदल दिया है। काम करो। आज हफ्ते के ७ दिन सिमिट कर ६ या ५ दिन पिछले ५०-६० साल से सो रहा व्यक्ति आज जग जाय और ही रहे गये हैं। कार्यालय में जाने की आवश्यकता नहीं है। आप देखे तो उसे अपने चारों ओर का वातावरण अजीब सा लगेगा. अपना पूरा काम घर से ही कर सकते हैं। समस्या होगी यदि उसे देख वह अवाक् और स्तब्ध रह जायेगा। उसे दिखेंगे- काम इसी प्रकार घटता रहा तो मनुष्य करेंगे क्या? तो ऐसे १. कानों पर मोबाईल लगाए, स्कूटर, मोटर साइकल, आगामी समय में शिक्षा कैसी हो? शिक्षा के उद्देश्य प्रस्तावित कार में जाते हुए लोग। गाड़ी के चलने के साथ उनकी बातचीत करते हुए कहा गया थाभी चल रही होगी। “सा विद्या या विमुक्तये" यह सिद्धान्त तो आज अर्थहीन २. उन लोगों के मन में काम जो उन्हें करना है उसकी हो गया है। शिक्षा मनुष्य का सर्वागीण विकास करे, शिक्षा निरन्तर उधेड़बुन चलती होगी। वे बेतहाश भागते होंगे। दो मिनट व्यक्तित्व का विकास करे ये भी आज निरर्थक हो रहे हैं। रुककर कुछ बात कर लेने का समय भी उनके पास नहीं होगा। "अर्थकरींच विद्या' विद्या हमें आजीविका प्राप्त करने में सक्षम चेहरे पर तनाव की छाया स्पष्ट दीखती होगी। बनाये इस बात को लक्ष्य में रखकर किसी जमाने में Profesional Education की बात चली थी। केवल प्रोफेशनल ३. सड़क के दोनों ओर नाना प्रकार के प्रलोभनों को इंगित एजूकेशन आज आदमी को उतना ऊंचा उठाने में समर्थ नहीं है करते हुए होर्डिंग्स की भरमार होगी। कहीं सेल का बोर्ड होगा। जितनी कि उसकी अपेक्षाएं हैं। तो कहीं एमबी०ए/एमसी० ए/आदि के निश्चित नौकरी दिलाने ० अष्टदशी / 1270 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.orgPage Navigation
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