Book Title: Jivan Nirman me Guru ki Bhumika
Author(s): Shikharmal Surana
Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf

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Page 2
________________ 71 || 10 जनवरी 2011 || जिनवाणी जब भी परिवार वाले पुनर्विवाह के लिए ज्यादा जोर देते, तब वे घर पर बिना कुछ बोले अपने गुरु की सेवा में पहुँच जाते। यह सिलसिला काफी समय तक चलता रहा। अन्ततः हताश होकर मेरे दादा-दादी तथा अन्य परिवारजनों ने पिताजी से पुनर्विवाह के लिए आग्रह करना छोड़ दिया। मैं दिल की गहराई से कह सकता हूँ कि पूज्य आचार्य श्री हस्ती ने मेरे पिताजी के जीवन को आध्यात्मिक दिशा में मोड़ने के साथ ही मेरे जीवन-निर्माण की नींव भी डाल दी। मेरा पूरा परिवार उनके परम उपकारों से उपकृत है। (4) गुरु के छोटे-से वाक्य को शिरोधार्य करके पिताजी ने अपने जीवन में कोई नया सांसारिक कार्य भी नहीं किया। कोई व्यापार नहीं किया, कोई जमीन-जायजाद, सोना, चांदी, गहने आदि नहीं खरीदे। अपने जीवन के शेष 54 वर्ष गुरुसेवा तथा संयुक्त परिवार में रहते हुए धर्म-ध्यान में बिताये। पहले नागौर में तथा कुछ वर्षों बाद चेन्नई में अपने अनुज उमरावमल जी सुराणा के साथ रहे। जितना होता, उनके व्यापार में हाथ बँटाते। चातुर्मास के अलावा भी महीनों तक वे गुरुदेव की सेवा में रहते और उनकी विहार यात्राओं में भी साथ चलते थे। सिर्फ मेरे कारण उन्होंने महाव्रत अंगीकार नहीं किये। सत्संग, ब्रह्मचर्य, धर्म-ध्यान आदि से वे नीरोग रहते थे। अपना सारा कार्य खुद करते थे। उनका व्यक्तिगत खर्च नहीं के बराबर था। “सादा जीवन उच्च विचार" उनकी पहचान बन गई थी। 84 वर्ष की उम्र में पूरे होश में स्वयं की प्रबल भावना तथा वर्तमान आचार्यश्री की स्वीकृति के बाद, चतुर्विध संघ की साक्षी से सविधि संलेखना संथारा धारण किया। अपने गुरुदेव का अनुसरण करते हुए पाँच दिन का संथारा पूर्ण करके 13 जुलाई 2001 को वे समाधिमरण को प्राप्त हुए। चेन्नई निवासी कहते हैं कि पिछले कई वर्षों के स्मरणकाल में चेन्नई में ऐसा सजगतापूर्ण व शुद्ध संथारा देखने को नहीं मिला। (5) यदि गुरुवर आचार्य श्री हस्तीमल जी ने मेरे पिताजी को यह कहकर नहीं चेताया होता कि “नवोजुनो मत करीजै", तो शायद मेरे पिताजी परिवार वालों के दबाव में आकर दूसरी शादी करते, नया व्यापार करते और संसार में फँसते। ऐसा होने पर 54 वर्ष तक पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन, शान्तिपूर्वक गुरुसेवा और इतना धर्म-ध्यान नहीं हो पाता। फलस्वरूप जो सुन्दर संथारा उन्हें आया, वह भी शायद नहीं आ पाता। सही समय पर सही दिशा देकर उनके जीवन का निर्माण उनके गुरुदेव ने कर दिया। इसी प्रकार यदि पिताजी दूसरी शादी करते तो मेरी सौतेली माँ आती। पिताजी मुझे इतना प्यार-दुलार शायद ही दे पाते। वे जो भी व्यापार करते, उसमें मुझे लगना पड़ता। मैं कानून की पढ़ाई और वकालात शायद ही कर पाता। मेरे जीवन का जिस प्रकार बेहतर निर्माण हुआ है, वह शायद नहीं हो पाता। इस प्रकार मेरे जीवन-निर्माण की नींव भी आचार्य श्री हस्ती ने डाली। (6) पिताजी दीपावली के दिन कभी घर पर नहीं रहते थे। या तो गुरुदेव की सेवा में या पौषधोपवास के साथ स्थानक में। वर्ष 2002 की दीपावली को खयाल आया कि मुझे सपरिवार आचार्यश्री की सेवा में पहुँचना चाहिये। मैं सपरिवार मुम्बई में चातुर्मासार्थ विराजित वर्तमान आचार्य श्री हीराचन्द्र जी के Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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