Book Title: Jivan Drushti me Maulik Parivartan
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 4
________________ 26 पशु-धनका हास हो रहा है और आदमी अशक्त एवं अकर्मण्य हो रहा है / बंगालके 1643 के अकालमें भिखारियों से अधिकांश स्त्रियाँ और बच्चे ही थे, जिन्हें उनके सशक्त पुरुष छोड़कर चले गए थे / केवल अशक्त बच रहे थे; जो भीख माँग कर पेट भरते थे / मेरे कहनेका तात्पर्य यह है कि हमें अपनी जीवन-दृष्टि में मौलिक परिवर्तन करना चाहिए / जीवन में सद्गुणोंका विकास इहलोकको सुधारनेके लिए करना चाहिए / आज एक ओर हम आलसी, अकर्मण्य और पुरुषार्थहीन होते जा रहे हैं और दूसरी ओर पोषणकी कमी तथा दुर्बल सन्तानकी वृद्धि हो रही है। गाय रख कर घर-भरको अच्छा पोषण देनेके बजाय लोग मोटर रखना अधिक ज्ञानकी बात समझते हैं / यह खामखयाली छोड़नी चाहिए और पुरुषार्थवृत्ति पैदा करनी चाहिए / सद्गुणोंकी कसौटी वर्तमान जीवन ही है / उसमें सद्गुणोंको अपनाने, और उनका विकास करनेसे, इहलोक और परलोक दोनों सुधर सकते हैं। सितम्बर 1948] [ नया समाज, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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