Book Title: Jinmurti Pooja Sarddhashatakam
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 13
________________ चतुर्भिनिक्षेपैःप्रथिततरनामाकृतिमयः सुभावः सन्दिष्टा विमलमतिभिः संयमधनैः । सदा सद्भिस्सेव्यारुसुमतिसदनम्र वचनैः यतश्चैतत् शास्त्रैरनुभवपदैर्दष्टमखिलम् ॥ सुखश्रेणी यस्यां वसति कलहंसीव सुखदा गुणग्रामारामा नयनसुखसारा अनुदिनम् । महीयन्ते तस्माद् भवभयविभेत्तुः प्रतिकृतिः , लभन्तां तां सिद्धिमिह भवभवां वा परगताम ॥ श्रीपाल की शरीर-सुषमा का वर्णन कितना सटीक हैम्रदिम्ना यत्पादौ कमलमृदुतां ताव जयताम् करौ शुण्डादण्डौ पुरवर कपाटोपममुरः । ललाटश्चन्द्रार्धं वपुरखिल शोभातिवसनम्, समेषां चानन्दं जनयति यथा पार्बरणविधुः ॥ सुधी पाठकगण, 'श्रीजिनमूत्तिपूजासार्द्धशतकम्' से पूर्णरूपेण सन्तुष्ट तथा आह्लाद प्राप्त करेंगे, यही विश्वास है। पूज्य आचार्यश्रीजी ने मुझे इसके संशोधन के लिए जो कार्यभार सौंपा है, तदर्थ मैं उनका कृतज्ञ हूँ । दिनाङ्क १२-५-१६६३ विदुषां वंशवद : शम्भुदयाल पाण्डेय १०/४३० नन्दनवन जोधपुर-८ राजस्थान

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