Book Title: Jinalay me Dhyan Rakhne Yogya Suchnaye
Author(s): Ajaysagar
Publisher: Z_Aradhana_Ganga_009725.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ 11. पार्श्वनाथ भगवान की फेन नौ अंगों में नहीं गिनी जाती. अतः फेन की पूजा आवश्यक नहीं है. फिर भी इच्छा हो तो अनामिका अंगुली से पूजा की जा सकती है. 12. प्रभुजी की पूजा में अच्छे, सुगंधी, ताजे, जमीन पर न गिरे हुए अखंड पुष्प ही चढ़ाने चाहिये. पुष्प का पत्ता अलग न करे. पुष्प पानी से नहीं धोने चाहिये. 13. अष्टमंगल की चौकी (पाटली) का मांगलिक के तौर पर प्रभु सन्मुख स्वस्तिक की तरह आलेखन करना चाहिये. 14. अक्षत पूजा में तंदुल की सिद्धशिला की ढेरी, उसके बाद दर्शन-ज्ञान-चारित्र की ढेरी और अंत में स्वस्तिक की ढेरी करनी चाहिये. आलंबन करने में पहले स्वस्तिक और अंत में सिद्धशिला करनी चाहिये. 15. नैवेद्य पूजा में पीपरमेंट, चोकलेट, बाजारू मिष्टान या अभक्ष्य चीज रखना उचित नहीं है. 16. विलेपन आँगी व नव अंग की पूजा के अलावा अपनी इच्छा से बार-बार प्रभुजी को स्पर्श (टच) नहीं करना चाहिए. भावुक होकर प्रभुजी की गोद में सिर नहीं रखना चाहिए. 17. पूजा करते समय शरीर को खुजालना नहीं, छींक, खाँसी करना नहीं, उबासी या आलस नहीं करना, ऐसी कोई शंका होती हो तो तुरंत गम्भारे के या रंग मण्डप के बाहर हो जायें. 18. साधना, पूजा के वस्त्र बंद किनारों वाले न पहनें. किनारों पर दशी-गुच्छे होते हैं वे वस्त्र शुभ ऊर्जा वर्धक होते है. 19. स्त्री को पुरुष का वेश पहन कर पूजा नहीं करना चाहिए. पूजा के लिए पुरुष को दो वस्त्र अखण्ड सिले बिना के, एवं स्त्रियों को तीन वस्त्र पहनने 20. पूजा के वस्त्र पहनकर खाना-पीना नहीं चाहिए. 21. पूजा के वस्त्र पहनकर सामायिक प्रतिक्रमण नहीं करना चाहिए. 22. पूजा के वस्त्र से हाथ-पैर, मुँह आदि शरीर के अंग नहीं पौंछना चाहिए. 690696699 अभयदान देने वाले मेभय स्वयं भयभीत रहता है.

Loading...

Page Navigation
1 2