Book Title: Japyog Sadhana
Author(s): Vimalkumar Choradiya
Publisher: Z_Nahta_Bandhu_Abhinandan_Granth_012007.pdf

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Page 1
________________ 960 DOKA अध्यात्म साधना के शास्वत स्वर ५०५ जप योग साधना -विमल कुमार चौरडिया विश्व के समस्त विवेकशील जीव इस संसार के आवागमन से 'जप' भक्ति योग का ही अंग है, बहिर् आत्मा से अन्तरात्मा में मुक्त होना चाहते हैं। आवागमन से मुक्त होने का एक मात्र साधन जाने का साधन है। जैन धर्म की अपेक्षा से नमस्कार महामंत्र के है 'स्व' स्वरूप में रमणता, स्थिरता। जप को ही लक्ष्य में रखकर यहाँ वर्णन करना उचित होगा। जिस-जिस उपाय से चित्त का 'स्व' स्वरूप के साथ योग होता जप करने के पूर्व, सिद्धि के लिये, कुछ प्रयोजनभूत ज्ञान है उनको योग कहते हैं। आवश्यक हैपू. हरिभद्र सूरिजी ने लिखा है-'मक्खेण जोयणाओ जोगो' (१) पंच परमेष्ठी भगवन्तों का स्वरूप गुरु के पास से भली जिन साधनों से मोक्ष का योग होता है उनको योग कहते हैं। प्रकार समझना चाहिये। योग एक ही है किन्तु उसके साधन असंख्य हैं। मुख्यतः योग (२) नमस्कार मंत्र का चिन्तन, मनन कर आत्मसात् कर लेना ३ भागों में विभक्त किये जा सकते हैं-१. ज्ञान योग, (२) कर्म चाहिए। योग, (३) भक्ति योग। मोटे रूप में तीनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं, सहयोगी हैं। ज्ञान योग में ज्ञान सेनापति और कर्म एवं भक्ति सैनिक (३) जैसे किसी अच्छे परिचित का नाम लेते ही उसकी छवि हैं; कर्म योग में कर्म सेनापति और ज्ञान और भक्ति सैनिक हैं; सामने आ जाती है, उसका समग्र स्वरूप (गुण, दोष आदि) ख्याल भक्ति योग में भक्ति सेनापति है और ज्ञान और कर्म सैनिक हैं। इन में आ जाता है वैसे ही जप करते समय मंत्र के अक्षरों का अर्थ. तीनों योगों की असंख्य पर्याय हैं। मुख्यतः निम्नलिखित हैं पंच परमेष्ठि का स्वरूप मन के सामने प्रगट हो जाना चाहिए। (१) ज्ञान योग के पर्याय-१. ब्रह्म योग, २. अक्षर ब्रह्म योग, (४) परमेष्ठि भगवन्तों का हम पर कितना उपकार है, उनके ३. शब्द योग, ४. ज्ञान योग, ५. सांख्य योग, ६. राज योग, ७. उपकार से या उनके ऋण से हम कितने दबे हुए हैं उसका ध्यान पूर्व योग, ८. अष्टाङ्ग योग ९. अमनस्क योग, १०. असंप्रज्ञात बराबर रखना चाहिए। योग, ११. निर्बीज योग, १२. निर्विकल्प योग, १३. अचेतन (५) परमेष्ठि भगवन्तों के आलम्बन के बिना भूतकाल में समाधि योग, १४. मनोनिग्रह इत्यादि। अनन्त भव भ्रमण करने पड़े, उनका अन्त इन्हीं के अवलम्बन से (२) कर्म योग के पर्याय-१. सन्यास योग, २. वृद्धि योग, ३. आ रहा है इसकी प्रसन्नता होना चाहिये। संप्रज्ञात योग, ४. सविकल्प योग, ५. हठ योग, ६. हंस योग, ७. (६) मानस जप करते समय काया और वस्त्र की शुद्धि के सिद्ध योग, ८. क्रिया योग, ९. तारक योग, १०. प्राणोपासना | साथ-साथ मन और वाणी का पूर्ण मौन रखना चाहिए। योग, ११. सहज योग, १२. शक्तिपात, १३. तन्त्र योग, १४. बिन्दु योग, १५. शिव योग, १६. शक्ति योग, १७. कुण्डलिनी योग, १८. (७) जप का उद्देश्य पहले से ही स्पष्ट और निश्चित कर लेना पाशुपत योग, १९. कर्म योग, २०. निष्काम कर्म योग, २१. 1 चाहिए। इन्द्रिय निग्रह इत्यादि। (८) मोक्ष प्राप्त हो, मोक्ष प्राप्त हो, सब जीवों का हित हो, सब (३) भक्ति योग-१. कर्म समर्पण योग, २. चेतन समाधि, ३. जीव परमात्मा के शासन में रुचिवन्त हों... भव्यात्माओं को मुक्ति महाभाव, ४. भक्ति योग, ५. प्रेम योग, ६. प्रपत्ति योग, ७. प्राप्त हो, संघ का कल्याण हो, विषय कषाय की परवशता से मुक्ति शरणागति योग, ८. ईश्वर प्रणिधान योग, ९. अनुग्रह योग, १०.३ मिले, मैत्री आदि भावनाओं से मेरा अंतःकरण सदा सुवासित रहे मन्त्र योग, ११. नाद योग, १२. सुरत-शब्द योग, १३. लय योग, ... यह भाव हो। १४. जप योग, १५. पातिव्रत योग इत्यादि नाम भक्ति योग के (९) जप करते समय कदाचित् चित्त वृत्ति चंचल रहे तो पर्याय हैं। 1 निम्नलिखित वाक्यों में से अथवा दूसरी अच्छी विचारणा में अपने जैन पम्परा के अनुसार योग के हेतु मन, वचन और काया है। चित्त को लगावेंमन ही मनुष्य के बन्ध और मोक्ष का कारण है। जैन परम्परा में मन को मुख्य मानकर ज्ञान योग को विशेष महत्व दिया है। मन के जगत के जीव सुखी हों, कोई जीव पाप न करे, सबको लिये ज्ञान योग की प्रमुखता है; काय योग के लिये कर्म योग की। 1 सद्बुद्धि मिले-बोधि बीज प्राप्त हो... आदि। प्रमुखता है और वचन योग के लिये भक्ति योग की प्रमुखता है। (१०) राग द्वेष में चित्त को नहीं लगाना, समता युक्त रखना। । See 66- 6 END 169 D OR-99906 30000 66-1 . PooBHAR 2009 1902

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