Book Title: Jansar Saksharta aur Rashtra Nirman
Author(s): B L Dhakad
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ जन साक्षरता और राष्ट्र-निर्माण स्वतन्त्र शिक्षा प्रणाली ने व्यक्ति-व्यक्ति के बीच में खाई पैदा कर दी है, वर्ग संघर्ष को प्रश्रय दिया है और समस्त मानव समाज अमानवीय व्यवहार की ओर सतत बढ़ा जा रहा है। इससे विश्व-सुरक्षा व शान्ति खतरे में पड़ गई है । अपेक्षित है स्कूली शिक्षा तो अनिवार्य बने जिसमें वांछित सर्वांगीण विकास लक्षित रखा जाय और जीवनोपयोगी हो। दूसरी ओर उच्च शिक्षा चयनित व विवेकपूर्ण हो, उसमें डिगरियों की लोलुपता प्रमुखता न हो। गरीब वर्ग को उपयुक्त सुविधायें प्रदान की जा सके। शिक्षा में समायोजन लोकतन्त्र में भी आवश्यक है । ११५ राष्ट्रीय प्र शिक्षा कार्यक्रम (१९७८-८३) निरक्षरता उन्मूलन की दृष्टि से एक विशाल कार्यक्रम देश के सम्मुख है | उसके पीछे दृढ़ संकल्पता, राष्ट्रीय भावना और साधन किस सीमा तक उपलब्ध है, यह एक विचारणीय प्रश्न है। हर अच्छे कार्यक्रम के साथ प्रतिक्रियावादी शक्तियाँ स्वतः जन्म लेती हैं, कार्य में अवरोधक बन जाया करती हैं, देश के लिये, जनतन्त्र में एक दुर्भाग्य है। गरीब देश में उच्च शिक्षा में जो आधिक्य है वह एक जटिल प्रश्न है । जनतन्त्र में समाधान आसान नहीं है । साधनों का अपव्यय अवश्य है । यदि आधिक्य पर राशि व्यय की जाने वाली प्राथमिक शिक्षा पर जुटाई जाती तो सम्भवत: प्राथमिक शिक्षा बहुत पहले अनिवार्य हो सकती थी और ५ से १४ वर्ष के बालक को भी शिक्षा सुविधा सब को उपलब्ध हो सकती थी । अतिरिक्त उच्च शिक्षित बेरोजगारी का सामना देश को नहीं करना पड़ता और माँग और पूर्ति का सामंजस्य बना रहता । इस प्रकार के अपव्यय से तत्कालीन देश को हानि होती है। लागत लाभ सिद्धान्त के आधार पर सार्वजनिक राशि का आवंटन अधिक हितकर रहता है। उस स्थिति में जनता अधिक लाभान्वित हो सकती थी, यह मेरी मान्यता है । उपसंहार वर्तमान में शिक्षा प्रणाली में देश की विभिन्न शक्तियां कार्यरत हैं, जैसे शिक्षक, शिक्षार्थी, ग्रामीण युवक, सामाजिक कार्यकर्ता, कार्यरत फील्ड कर्मचारीगण, स्वैच्छिक संगठन तथा राज्य के शिक्षा तथा समाज कल्याण विभाग । मुख्य समस्या यह है कि अपने-अपने कार्य सम्पादन में किस सीमा तक अनुप्राणित हैं और राष्ट्रहित के प्रति किस सीमा तक समर्पित भावना से योगदान देते हैं। शिक्षा कार्यक्रम एक महान पुनीत अनुष्ठान है, उसी अनुरूप ऊपर से नीचे तक कार्य का सम्पादन हो तो वांछित सफलता अवश्य सम्भावी हो सकेगी। सुदृढ़, गतिशील व स्वस्थ शैक्षिक संरचना भारत के भावी स्वरूप को अधिक उजागर कर सकेगी। आदर्श एक बात है और उसका निर्वाह दूसरी बात है। शिक्षक व स्कूल पर हमारा ध्यान केन्द्रीभूत होना चाहिये । Jain Education International हमारी प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के शब्दों में- “हमारा प्रयास देश में प्रत्येक परिवार को आत्मनिर्भर बनाने का है ।" यह एक सुन्दर स्वप्न है जिसको थोड़े समय में पूरा नहीं किया जा सकता। प्रारम्भ तो हो चुका है और इस उद्देश्य की प्राप्ति की ओर अग्रसर है। दूसरे शब्दों में पारिवारिक स्वावलम्बिता उपयोगी जनशिक्षा में अन्तनिहित है। अन्त में भारत राष्ट्र में एक मिजगशील समाज का निर्माण हो जिसका लक्ष्य आजीवन शिक्षा ग्रहण करना हो और विकास मार्ग में सतत अग्रसर रहे। असम्भव तो नहीं कहा जा सकता । For Private & Personal Use Only B+0 0 www.jainelibrary.org.

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5