Book Title: Jaina Law Bhadrabahu Samhita
Author(s): J L Jaini
Publisher: ZZZ Unknown

Previous | Next

Page 80
________________ APPENDIX A 63 दत्ते तम्मि ण कलही सुणिच्छ्दो धम्मसूरिहिं णिचं । दिण्णम परायपत्ते ससरिकयं णा हवेह कलहोय ॥३८॥ सब्बं सव्वस मदं जहा तहा दाय भायम्मि । सव्वेसिं हि अहावे पुरणियो वित्त वंभ विणा ॥३९॥ बंभस्स जं धणं विहु तस्सहु भजाहि बिंभणा अणणे । जिछे गयेहु भायरि तहय कणिठे विभत्त स दब्जे ॥४०॥ सोय रबंधु बग्गो गेण्हदु तेसिं धणं कमसो। पडिदो पंगू वहिरो उम्मत्तो संद कुज अंधोय ॥४१॥ विसई जडाय कोही गूंगो रुग्गीय पयङ्कलो। विसणी अभक्खभाई एदेसि भाग जुग्गदा णस्थि ॥४२॥ भुत्ति बसण जणिता परंदु जस्ता विकस्सावि। मंता सहाइ सुद्धा एदेसि भाग जोगदा अस्थि ॥४३॥ एदेखि वि सुदा अवि दुहिदा जो सब गुण सुद्धोय । होइहुभाय सु जुग्गा णियधम्मरदा जणाहु सब्बेसि ॥४४॥ जहकालं जहखेतं जहाविहिंतेसिं समभाऊ । बिचरीया णिबस्सा पडिउलाये तहेव बोढव्वा ॥४५॥ पुब्बब हू तहा सुद कमसो भायस्स भाइणे हाई। इत्थिय धणं खु दिण्णं पाणीगहणस्स काल ये सव्वं ॥४६॥ माया पिया भयिण्णा पिञ्चसुसायेहिं संदिगणं । भूसण वत्थ हयादिय सब्बं खलु जाण इत्थिधणं ॥४७

Loading...

Page Navigation
1 ... 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146