Book Title: Jain Vastu aur Murtikala
Author(s): K Bhujbali Shastri
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf

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Page 1
________________ जैन वास्तु और मूर्त्तिकला पं० के० भुजबली शास्त्री, विद्याभूषण, मूडबिद्री लार्ड कर्जनको भारतकी शिल्पकला में बड़ा अनुराग था । उसने अपने शासन कालमें भारतीय प्राचीन कीर्तिसंरक्षण — विभाग स्थापित कर बड़ा उपकार किया । इस विभाग द्वारा कई स्थानोंको खुदाकर प्राचीन स्थापत्यकलाके सुन्दर-सुन्दर नमूने निकाले गये । उसमेंसे नालंदा, तक्षशिला, मोहनजोदरों, हडप्पा आदि प्रमुख हैं । यहाँको प्राचीन ऐतिहासिक सामग्रियाँ बड़े महत्वकी हैं । हडप्पा और मोहेनजोदड़ोमें प्राप्त मूर्तियाँ एवं इमारतोंकी निर्माण - कलामें और बैबीलियाकी कलामें कोई अन्तर नहीं है । इन स्थानोंमें जैनोंके भी स्मारक मिले हैं । इनमें से यहाँ कुछ स्थानोंका विवरण दिया जा रहा है । आबू - भारतवर्ष की शिल्पकला विश्वविख्यात है । यहाँके कारीगर एक टाँकी और हथौड़ेसे जो काम कर गये हैं, ऐसा काम इस वैज्ञानिकयुगमें भी असंभव है । यहाँके प्रधान स्थानोंमें से आबूके जैनमन्दिर एक हैं । संख्यामें ये दो ही हैं । मन्दिरोंकी खुदाईका काम बहुतही कलापूर्ण रीतिसे किया गया है । ये दोनों मन्दिर सफेद और आसमानी रंग के पत्थरोंसे बने हुए हैं । इनमें निहायत उमदा खुदाई और नक्काशीका काम किया गया है । मन्दिरोंके सामनेके मण्डपोंमें जो खुदाई और नक्काशीका काम किया गया है, वह महान तथा अवर्णनीय है । कलाविशारदोंका मत है कि पीलखाने के सामने जो जाली बनी हुई है, ऐसी जाली ताजमहल में भी नहीं पाई जाती । सुना जाता है जिस टोंक पर आदिनाथका मन्दिर बना हुआ है, सिर्फ उसे मन्दिर योग्य बनाने में छप्पन लाख रुपये खर्च हुये थे । इस मन्दिरका काम २४ वर्ष में समाप्त हुआ था और २८ करोड़ रुपये खर्च हुए थे । भारतीय तक्षकलाके विशेषज्ञ फर्गुसन साहबने लिखा है कि "इन मन्दिरोंकी खुदाईसे समानता रखनेवाला भारतवर्ष में सिर्फ ताजमहल ही है । " जैसलमेर किलेके मन्दिर भी कलाकी दृष्टिसे श्रेष्ठ हैं चित्तौरगढ़का जैन कीर्तिस्तंभभी एक दर्शनीय वस्तु है । खुजराहो यहाँके घंटाई जैन मन्दिरकी कारीगरी सबसे महीन है । सातवीं और आठवीं शताब्दियों में भारतकी सर्वोच्च कारीगरीका यह मन्दिर साक्षी है । यहाँका पार्श्वनाथ देवालय भी कलाकी दृष्टिसे सर्वोत्तम है । इसके पाखेकी सोभा सर्वथा दर्शनीय है । इस देवालय सम्बन्धी प्रत्येक इंच जगह पर सुयोग्य शिल्पियोंने अपने अपूर्व शिल्पचातुर्यका अनुपम उदाहरण उपस्थित किया है । त्रिकोणाकारमें स्थित इसके कोनेकी शोभा सर्वथा देखने योग्य है। इन मन्दिरोंमें कहीं भी चुनेका उपयोग नहीं किया गया है। पार्श्वनाथ मन्दिरकी सजावट में जो वैदिक मूर्तियाँ बनी है वे वस्तुतः दर्शनीय हैं । देवगढ़ - यह स्थान ललितपुर जिलेमें है । यहाँके जैन मन्दिर भी दर्शनीय हैं । स्मिथ महाशयके कथनानुसार गुप्तकालीन देवालयोंमें ये सर्वश्रेष्ठ हैं । यहाँकी दीवालोंमें अंकित हस्तकला भारतीय शिल्पकलाके Jain Education International - ३४१ - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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