Book Title: Jain Tattavsara Granth Satik
Author(s): Surchandra Gani
Publisher: Varddhaman Satya Niti Harshsuri Jain Granthamala Ahmedabad
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र
विषय
नास्तिकस्याजीवरूपस्थापना सेवाफलप्रतिपादनोतिलेश: सप्तदशोऽधिकारः श्लोक ४१
परमेश्वरप्रतिमापूजनेन पुणसम्भव निरा गिनि स्पृहिसेवया परमार्थसिद्धि प्रतिमा अजीवाऽपि तया पुण्यसिद्धि आप्तनियुक्तवस्तुन विशेषमान्यता ईश्वरो निराकारोऽस्ति तथापि कथं तत्प्रतिमा भवेत्
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नास्तिकस्यानाकरस्यापि भगवतः स्थापनोक्तिलेशोऽष्टादशोऽधिकारः श्लोक १९
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निराकारस्यापि पूजन स्थापना तदचनया लाभ
नास्तिकस्य द्रव्यभावधर्मफलसम्प्रापणोक्तिलेश एकोनविंशोऽधिकारः श्लोक २९ प्रतिमापूजन फलं प्राय शीघ्रमत्र भवे न प्राप्नोतीत्यस्य
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विषय
पत्र पृष्ठ
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आस्तिकनास्तिकानां द्वयेषामपि परम्परया मनोनिविषयता पादनेन च मुक्तिप्रापणकारणोतिलेशो विंशोऽधिकारः श्लोक ३९
आत्मज्ञानेनैव केवलराजयोगेन वा मुक्तिर्भवति एतद्विषये वैष्णवादि
कारणानि
परमेश्वर नामस्मरणस्याऽपि आवश्यकता
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सर्वजनकथनस्यैकवाक्यता घटना मुक्ते सर्वदर्शनानुसारिमार्ग सिद्धी निष्क्रियता
co.
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ग्रन्थग्रन्थोत्पन्नपुण्यजनतासमर्पणस्वीयगच्छ गच्छनायक
सम्प्रदाय गुरुनामस्वकीयगुरुभ्रात्रादिनामकीर्त्तनोतिलेश एकविंशतितमोऽधिकारः श्लोक २३
मनोनिरोधस्य योगमार्गे रमणकरणस्य चोपदेशम्
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