Book Title: Jain Tarka Shastra me Anuman Vimarsha
Author(s): Darbarilal Kothiya
Publisher: Z_Pushkarmuni_Abhinandan_Granth_012012.pdf

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Page 6
________________ 258 श्री पुष्करमुनि अभिनन्दन ग्रन्थ rimmunountummmmm...mama.ma.00mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm. 5 जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार, वीर सेवामन्दिर ट्रस्ट प्रकाशन, वाराणसी सन्दर्भ ग्रन्थ 1 बृहदारण्यक उपनिषद् 2 षट्खण्डागम-भूतबलि पुष्पदन्त 3 भगवतीसूत्र 4 नियमसार तथा प्रवचनसार-कुन्दकुन्द देवागम अपरनाम आप्तमीमांसा-समन्तभद्र, वीर सेवामन्दिर ट्रस्ट, 1967 6 लघीयस्त्रय, प्रमाणसंग्रह, न्यायविनिश्चय-अकलंक 7 प्रमाण-परीक्षा, पत्र-परीक्षा, तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक-विद्यानन्द 8 परीक्षामुख-माणिक्यनन्दि 6 प्रमेयकमल मार्तण्ड-प्रभाचन्द्र 10 प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार- देवसूरि 11 प्रमीणमीमांसा-हेमचन्द्र 12 न्यायावतार-सिद्धसेन 13 ज्ञानबिन्दु-यशोविजय 14 न्यायदीपिका-अभिनव धर्मभूषण 15 तत्त्वार्थसूत्र-गृद्धपिच्छ (उमास्वामि) 16 जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार, डॉ० दरबारीलाल कोठिया, वीर सेवामन्दिर ट्रस्ट, 1966 पुष्क ---0-0-0-0-0--0--0-0-0--0-0--0--02 र-वाणी -0-0-0--0--0--0--0-0-0-0--0-0--0----0--0--0-0-0--0--0--- तुम्बा स्वयं में हलका है तो वह सदा पानी पर तैरता है, गेंद हलकी है / इसलिए आनन्द से उछलती है / मिट्टी का लेप लगने से तुम्बा पानी में नीचे पैठता है और मिट्टी कीचड़ आदि से भारी होने पर गेंद भी नहीं उछल पाती। आत्मा भी स्वयं में हलका, भार-रहित है इसलिए सदा ऊर्ध्वगति वाला और सदा प्रसन्नस्थिति वाला है किन्तु विकार-कषायों के भार से दबकर वह निम्नगति वाला हो जाता है। h-0--0-0--0--0-0--0--0--0-0--0--0--0--0-S X प्रत्येक मनुष्य जिस प्रकार बाह्य आकृति से भिन्न है, उसी प्रकार अन्तर् प्रकृति से भी / जब सब के बाहरी आकार को एक नहीं बनाया जा सकता, तो भीतरी विचार एक कैसे हो सकते हैं / n-o-0-0--0--0------------------------------0-0--0-पुष्क र-वाणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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