Book Title: Jain Studies in France
Author(s): Kole Kaile
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf

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Page 4
________________ लुइ रेनो के नाम प्रमुख हैं। इन्होंने कनिष्क, शातवाहन, बल्लभी राजाओं के समय की जैन परंपराओं का अध्ययन प्रकाशित किया / जे० फिलियोजेट ने जैन और लातीनी आंकड़ों के आधार पर इनके समसामयिक विकास को प्रकाशित किया। ए. गुयेरीनो ने 1908 में ही जैन शिलालेखों की सूची प्रकाशित की थी। उसने शान्तिसूरि के जीव विचार का फ्रांसीसी भाषा में अनुवाद किया / जर्नल एसियाटीक में जैन ग्रन्थों की 1909 तक उपलब्ध सूची प्रकाशित की / अन्त में उन्होंने 1926 में जैन धर्म पर भी एक विस्तृत पुस्तक लिखी / यह बड़े दुःख की बात रही कि उस समय अनुसंधान के लिये आर्थिक अवसर बहुत कम थे, इसलिये गुयेरीनो को अपनी आजीविका के लिये अन्य काम करना पड़ा। अन्यथा जैन विद्याओं के क्षेत्र में उसका योगदान और भी महनीय होता। एल. रेनो और डी. लेकोम्बे दूसरे प्रमुख विद्वान् हैं जिन्होंने 1950 से अपने अनेक लेखों तथा पुस्तकों के माध्यम से फ्रांस में जैन विद्याओं को आगे बढ़ाया। उसके बाद तो अनेक विश्वकोशों में इस संबंध में नई-नई जानकारी जोड़ो जाने लगी। इसका विवरण अनेक जगह उपलब्ध होता है / एल. रेनो ने भारत की यात्रा भी की और तेरापन्थी श्वेतांबर संप्रदाय से स्थापित अपने संपर्कों के आधार पर जैन धर्म और उसके संप्रदायों पर अनेक लेख व पुस्तकें लिखीं। मैडम सी. कैले ने भी फ्रांस में जैन विद्याओं को आगे बढ़ाया। उन्होंने अर्धमागधी भाषा और सल्लेखना के समान जैन आचारों पर शोध की। इस पर उन्होंने देश-विदेशों में व्याख्यान दिये और अनेक पुस्तकें प्रकाशित की / इन्होंने चन्दाविज्झाय का अनुवाद भी किया। इस समय वे जैन स्रष्टि विद्या तथा जैन कथाओं पर शोध करा रही हैं / ___ इस प्रकार फ्रांस में जैन विद्याओं के प्रति विद्वानों की रुचि निरन्तर बढ़ रही है / लेखक का विश्वास है कि जैन समाज एक गतिशील सांस्कृतिक समाज है और इसने सदैव सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक जैन-अध्ययन के लिये सहायता दी है / यह सहयोग ही फ्रांस में जैन विद्याओं के अध्ययन और प्रसार में प्रेरक रहा है। -523 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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