Book Title: Jain Samaj ki Ekta Samasya evam Samadhan
Author(s): Prakash Kavadiya
Publisher: Z_Lekhendrashekharvijayji_Abhinandan_Granth_012037.pdf

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Page 4
________________ सुत्र में बांधने का महत्वपूर्ण कार्य करें। केवल तपश्चर्या, व्रत, महोत्सव, दीक्षा, मंदीर स्थापना से कार्य नहीं चलेगा। उनको करने के साथ-साथ यह एकता का कार्य स्वयं को अपने हाथों में लेना होगा। वे अपने अलग-२ पंथ और अनुयायियोंकी संख्या मात्र बढ़ाने का काम छोड़े अन्यथा यह जैन समाज कहाँ तक छिन्नभिन्न होकर रसातल में चला जायेगा कहा नहीं जा सकता है। क्योंकि दिन प्रतिदिन विघटनना समाज में बढ़ती जा रही है। (3) समाज में आज जितनी भी सामाजिक संस्थाएँ है वे समाज में एकता के कार्यको करते हुए अपनी गतिविधीयोंको संचालित करे। उनके कार्यकर्ता जैन समाज को विघटन की ओर जाने से बचा सकते है। (4) श्री जैन कुल में जन्म लेना हम सौभाग्य मानते है तो इसी प्रकार से प्रत्येक जैन को यह मानसिकता बनाना होगी कि जैन-जैन भाई है एक है। हममें कोई भेद नही है। हम सभी एकही महावीर के अनुयायी है। (5) सवंत्सरी, महावीर जयंती मनाने की एकही तिथि समाज के संत मिल बैठकर एकबार तै कर लेवें और संयुक्त रुपसे पूरे देश के जैन समाज को बतायें कि संवत्सरी इसी तिथिको, एकही बार मनायी जायेगी। यदि यह नहीं होता है तो स्थानीय जैन समाज के सभी पंथ मिलकर यह तै करे कि हमे संवत्सरी इस तिथि को सामूहिक रुपसे एकही दिन मनाना है। जैसे कहा गया है कि "हम सुधरेंगे, युग बदलेगा।" इसलिये पहले हम अपने स्वयं के नगर, कस्बों, गाँवो से इसे शुरू कर देवें। हमारा संत समाज यहि इस बात को नहीं करता है तो हमें करना होगा। फिर देखीये वे स्वंय अपनी मानसिकता बदलने को मजबूर होंगे। हम उनके अनुयायी है इसका मतलब यह नहीं है कि एकता के मंत्रको भी भूला दिया जावे। (6) प्रत्येक जनगणनामे स्वयं को जैन लिखवाये यह भी अपने मन में यह अनुभव करवाना है कि मैं जैन हूँ। और जैन सब एक है। (7) भारत जैन महामंडल, अखिल भारतीय जैन संघ, और इसी प्रकार की अन्य संस्थाएँ सक्रीय होकर प्रत्येक नगर, कस्बे, गांव, शहरमें अपनी शाखाएँ स्थापित कर नव जवान पीढ़ी को इसका सदस्य बनाये। और उनमे एकता स्थापित कर नवनिर्माण के बीज बोयें। ये संकलीत होंगे तो उसमें से ही "एकता के फूल" खिलेंगे। अत: आईये इस शुभ अवसर हम प्रत्येक यह संकल्प लेवें की हम जैन समाज में एकता के लिये ही कार्य करेंगे। और इस समाज की पताका, महावीर की वाणी, उसके सिद्धांतो को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचायेगे। जिसके कारण विश्व यह सोचने को मजबुर हो कि जैन और महावीर के सिद्धांतो से ही विश्व कल्याण संभव है। 360 लातों के अधिकारी कभी भी बातों से नहीं मानते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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