Book Title: Jain Sahitya me Sankhya tatha Sankalnadisuchak Sanket
Author(s): Mukutbiharilal Agarwal
Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ विशेष संख्याके लिये चिह्न त्रिलोकसार' व अर्थसंदृष्टि में संख्यातके लिये 2, प्रसंख्यातके लिये 2 तथा अनन्तके लिये 'ख' का प्रयोग मिलता है। उपर्यक्त विवेचनके आधार पर यह स्पष्टतः कहा जा सकता है कि जैनाचार्योने संख्या तथा संकलनादि सूचक संकेतों पर विस्तृत एवं गहन अध्ययन प्रस्तुत करके गणितशास्त्रको समृद्धिशाली बनानेका स्तुत्य प्रयास किया है। वस्तुतः गणितशास्त्रमें संख्या तथा संकलनादि सूचक संकेतोंका अपना विशिष्ट महत्त्व है। इसके अभावमें गणितीय अन्तदृष्टि धुंधली-सी प्रतीत होती है। जैनाचार्योंने प्रस्त महत्ताको समझते हये संख्या और संकेतों पर विचार करना अपना परम कर्तव्य समझा और इन आचार्योंकी यह परम निष्ठा ही गणितशास्त्रको महत्ती देन सिद्ध हुई। ऐसे अनेक स्थान है जहाँ पर जैनाचार्योंने प्रस्तुत विषयकी मौलिकता तो प्रदानकी ही है, साथ ही साथ व्यावहारिकता, रोचकता और सरलताकी त्रिगुणात्मकताको भी समाहित किया है। अन्ततः यह कहा जा सकता है कि जैनाचार्योंने इस क्षेत्रमें जो भगीरथ प्रयत्न किये हैं, कदापि विस्मृत नहीं किये जा सकते / RDERA COASC ) in 1161 1. त्रिलोकसार, परि०, पृ० 21 / 2. वक्षाली मेनुस्क्रिप्ट, रतनकुमारी स्वाध्याय संस्थान, 1977 / .. -410 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9