Book Title: Jain Sahitya me Loka katha ke Tattva
Author(s): Basantilal Bam
Publisher: Z_Rajendrasuri_Janma_Sardh_Shatabdi_Granth_012039.pdf

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________________ जैन साहित्य में लोककथा के डॉ. बसन्तीलाल बम लोक कथाओं का उत्स मानव की आदिम विश्वास भावना में निहित है। प्राकृतिक प्रकोपों से अपने जीवन को सुरक्षित रखने के लिये जिन आस्थाओं को उसने जन्म दिया, वे ही कालान्तर में हमारी आदिम लोक-कथाओं का आधार बन गई। संसार में विविध भाषा-भाषी क्षेत्रों के लोक-वार्ताविदों ने भी उक्त संदर्भ में अपनी जो धारणाएं व्यक्त की हैं उनमें विशेष अन्तर प्रतीत नहीं होता । इतिहास इस तथ्य को नाप जोखकर उद्घाटित करता है कि राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों का प्रभाव भी इन पर पड़ा और लोक कथाओं के जो रूप उपलब्ध होते हैं वे मूलत: आदिम मानस तत्व को अपने में आज भी समेटे हुए हैं । इस तथ्य की पुष्टि में इतना कहना युक्ति संगत है कि लोक कथाओं का लिखित रूप जबसे उपलब्ध होता है, उनके तथा वर्तमान में उपलब्ध लोक कथाओं के तुलनात्मक अध्ययन से यह बात उजागर हो जाती है । Jain Education International जैन धर्म और दर्शन साहित्य में लोक-कथाओं के विशाल भण्डार भरे पड़े हैं। क्योंकि धर्म और दर्शन जैसे जटिल विषयों को अपढ़ और निरक्षर ग्रामीणों तक सरलतापूर्वक पहुंचाने का श्रेय हमारी उन असंख्य लोक कथाओं को है जिनके माध्यम को अपना कर सूत्रकारों, धर्माचार्यों ने इनकी गुत्थियों को सुलझाने का प्रयास किया है । यह परम्परा न केवल जैन धर्म में वरन् बौद्ध, वैष्णव और अन्यान्य धर्म सम्प्रदायों के साहित्य में भी बहुलता से मिलती है। प्राकृत भाषा में रचित महाकवि गुणाढ्य की "वड्ढकहा" इस प्रकार की कथाओं का प्रामाणिक ग्रन्थ है । सिंहासन बत्तीसी, वैताल पच्चीसी, कथासरित सागर, अट्ठकहा आदि ऐसे प्राचीन ग्रन्थ हैं जिनमें लोक-कथाओं के पुरातन स्वरूपों को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। पशु-पक्षियों की कहानियां, धर्मकथा हितोपदेश, पंचतन्व आदि ऐसे ग्रन्थ हैं जिनमें उपदेशात्मक प्रवृत्ति मूल में विद्यमान हैं । बी. नि. सं. २५०३ तत्त्व जैन साहित्य में ऐसी कथाओं का बाहुल्य है । जिनका मूल उद्देश्य मानव मन में भद्धा, विश्वास और आस्था की भावाना पैदा कर लोगों को धर्म के नैतिक मूल्यों की शिक्षा देना था । साथ ही अपने धर्म के प्रति आष्ट भी करना था। धर्म की निगूढतम पहेलियों को सुलझाने तथा मानव मन को गहराई से आकर्षित करने में इनसे श्रेष्ठ और अन्य कोई माध्यम नहीं हो सकता था । कथाओं का और उनमें वर्णित घटना चक्रों का मानवीय मन पर तीव्र प्रभाव पड़ता है। यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि कथाओं के विविध चरित्र और उनके जीवन दर्शन तथा घटनाओं का तीखा क्रम मानव मन में बरबस विश्वास और आस्था के सुदृढ़ शिखर स्थापित करना है, जो साधारण कथाचत्रों के सम्मुख नत नहीं हो पाता । जैन कथा ग्रन्थों में तीर्थंकरों के जीवनवृत्त, उनके राजसी ठाठबाट, वैभव सम्पन्नता, मनोविकारों पर कड़ा नियंत्रण, घर-परिवार, राजपाट सुख वैभव का त्याग, बियावान जंगलों में कठिन तपस्याएं विपदाओं से संघर्ष और उन्हें हंसते-हंसते स्वीकार करने की उनमें अटूट क्षमता, यातनाएं और उद्देश्य की ओर निरन्तर बढ़ने का अजेय साहस लक्ष्य प्राप्ति केवल ज्ञान और निर्वाण ये सब ऐसे प्रसंग हैं, जो तीर्थंकरों, सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों और साधु-समाज के साथ-साथ, श्रमणों, धनिकों और सम्पन्न पात्रों के जीवन में सामान्य रूप से उपलब्ध होते हैं । इन कथा चक्रों में केवल पुरुष वर्ग ही नहीं वरन् ऐसी महिलाएं भी हैं जो दया, करुणा, त्याग, तपस्या और उत्सर्ग की प्रतिमूर्ति तो हैं ही साथ में अपना जीवन भी होमकर अहिंसा धर्म के पालन से जीवन को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त कर लेती है। जन्म-जन्मान्तरों के फंदे को काटकर टूक-टूक कर देती हैं । सामान्यत: इसी प्रकार के घटना चक्रों से युक्त कथानक जैन साहित्य की मूल्यवान धरोहर है । प्राचीन आचार्यों ने कथाओं के वर्गीकरण और उनके आधारों For Private & Personal Use Only १०३ www.jainelibrary.org

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