Book Title: Jain Sadhu aur Biswi Sadi
Author(s): Nirmal Azad
Publisher: Z_Jaganmohanlal_Pandit_Sadhuwad_Granth_012026.pdf

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Page 10
________________ 80 पं. जगमोहनलाल शास्त्री साधुवाद प्रन्य [खण्ड (v) ऐसा प्रतीत होता है कि बीसवीं सदी का साधु वर्ग महावीर युग के आदर्शवाद और वीसवीं सदी के वैज्ञानिक उदारवाद के मध्य बौद्धिक दृष्टि से आन्दोलित है। वह अनेकान्त का उपयोग कर दोनों पक्षों के गुण-दोषों पर विचार कर तथा ऐतिहासिक मूल्यांकन से कुछ निर्णय नहीं लेता दिखता। मधु सेन' ने मध्यकाल की जटिल स्थितियों में निशीथ चूर्णिकारों के द्वारा मूल सिद्धान्तों की रक्षा करते हुए जो सामयिक संशोधन एवं समाहरण किये हैं, इनका विवरण दिया है। इसे एक हजार वर्ष से अधिक हो चुके हैं। समय के निकष पर जैन साधु के व्यवहारों व आचारों को कसने का अवसर पुनः उपस्थित है। साधवर्ग से मार्ग निर्देशन की तीब्र अपेक्षा है। निर्देश 1. मधु, सेन; ए कल्चरक स्टडी आव निशीथ चूणि, पाश्व० विद्याश्रम, काशी, 1975, तेज 277-290 / 2. मुनि, आदर्श ऋषि; बदलते हुए युग में साधु समाज, अमर भारती, 24, 6, 1987 पेज 32 / 3. साध्वी, चंदनाश्री ( अनु० ); उत्तराध्ययन, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, 1972, पेज 145 / 4. वही, पेज 467 / 5. आचार्य वट्टकेर; मूलाचार-१, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1984, पेज 5 / 6. आचार्य कुंदकुंद; अष्ट पाहुड-बारित्र प्राभूत, महावीर जैन संस्थान, महावीर जी, 1967 पेज 77 : 7. आचार्य विद्यानंद; तीर्थकर, 17,3-4, 1987 पेज 19 / 8. सोमण्यमल जैन; अमर भारती, 24, 6, 1987 पेज 72 / 9. देखिये निर्देश, 7 पेज 6 / / 10. उपाध्याय, अमर मुनि; अमर भारती, 24, 9, 1987 पेज 8 / 11. आचार्य वट्टकेर; मूलाचार-२, भारतीय ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1986 पेज 68 / 12. उपाध्याय अमर मुनि; 'पण्णा समिक्खए धम्म-२', वीरायतन, राजगिर, 1987 पेज 100 / 13. पंडित आशाधर; अनगार धर्मामृत, भा० ज्ञानपीठ, दिल्ली, 1977, भू० पेज 36 / 14. देखिये निर्देश 12 पेज 16 / सिद्ध पुरुष पुरातत्वज्ञ के समान होता है जो युगों-युगों से धूलि-धूसरित पुराने धर्म-कूप को कर्म-धूलि को दूर कर लेता है / इसके विपर्यास में, अवतार, अहंत या तीर्थकर एक इंजीनियर के समान होता है जो जहां पहले धर्मकूप नहीं था, वहां नया कूप खोदता है / संतपुरुष उन्हें ही मुक्तिपथ प्रदर्शित करते हैं, जिनमें करुणा प्रच्छन्न होती है पर अर्हत उन्हें भी मुक्तिपथ प्रदर्शित करते हैं जिनका हृदय रेगिस्तान के समान सूखा एवं स्नेहविहीन होता है। -रोबर्ट क्रोस्बी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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