Book Title: Jain Parampara me Guru ka Vaishishtya Author(s): Manoharlal Jain Publisher: Z_Jinvani_Guru_Garima_evam_Shraman_Jivan_Visheshank_003844.pdf View full book textPage 2
________________ 143 | 10 जनवरी 2011 | | जिनवाणी ] व्यक्तिपूजा ने शनैः शनैः स्थान ग्रहण कर लिया है, तथापि आशा की एकमात्र किरण यही शेष है कि कोई भी खुलकर सिद्धान्त रूप से इसे मान्यता नहीं दे रहे हैं। गुरु के बिना ज्ञान नहीं हो सकता, ऐसी श्रमण-परम्परा में अनिवार्य मान्यता नहीं है। हमारे यहाँ ज्ञान प्राप्तकर्ता तीन श्रेणियों में हैं। एक तो स्वयंबुद्ध जिनको परिपक्वता आने पर स्वतः ज्ञान प्राप्त हो जाता है। यह उत्कृष्ट स्थिति है जो तीर्थंकर भगवन्तों में लागू होती है। दूसरी स्थिति प्रत्येक बुद्ध की है जिनमें किसी घटना विशेष के कारण आत्मबुद्धि स्थायीरूप से जागृत हो जाती है, जैसे नमिराजर्षि आदि / श्मशान वैराग्य तो हम सभी को जागृत हो जाता है, फिर भी उसमें स्थायित्व का अभाव होने से प्रत्येकबुद्ध श्रेणी में नहीं पहुंच पाते हैं। तीसरे बुद्ध बोधित होते हैं, जिन्हें ज्ञान प्राप्त करने के लिये गुरु की आवश्यकता होती है। इसीलिये मान्यता प्रचलित हो गई है कि गुरु बिन ज्ञान नहीं। यह भी सत्य है कि इस पंचम काल में गुरु के बिना उद्धार नहीं है। __ आज सच्चे गुरु का अभाव दिन-प्रतिदिन अनुभव किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में आचार्य हस्ती की चर्या को आधार मानकर गुरु चयन किया जाए तो हम धोखा नहीं खा सकेंगे। इसलिये सर्वोत्तम गुरु और सर्वोत्तम शिष्य की व्याख्या को आत्मसात् करना हो तो आचार्य हस्ती के जीवन का आलोडन बार-बार करना होगा। - 74, महावीर मार्ग, धार (म.प्र.) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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