Book Title: Jain Karm Siddhant
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Z_Sagar_Jain_Vidya_Bharti_Part_1_001684.pdf

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Page 34
________________ 5 6 5. 6. 127 7. 8. 9. 10. कुन्दकुन्द, समयसार 171 11. (अ) अट्ठविहं कम्मगंधि-- इसिभासियाई 31 (ब) अट्ठविहकंम्मरयमलं -- इसिभासियाई 23 12. उत्तराध्ययन सूत्र (सं. मधुकरमुनि), 33 / 2-3 13. वही, 33/4-15 2223 मालवणिया, पं. दलसुखभाई आत्ममीमांसा (जैन संस्कृति संशोधन मण्डल ) मिश्रा, रविन्द्रनाथ, जैन कर्म सिद्धान्त का उद्भव एवं विकास (पार्श्वनाथ शोधपीठ, 21. वाराणसी - 5, 1985), पृ. 8 वही, पृ. 9-10 रागो य दोस्रो वि य कम्मबीयं, उत्तराध्ययनसूत्र 32/7 (अ) समवायांग 514 (ब) इसिमासियाई 9 / 5 ( स ) तत्त्वार्थसूत्र 8/1 14. अगुत्तर निकाय्उद्धृत उपाध्याय भरत सिंह, बौद्ध दर्शनव अन्य भारतीय दर्शन, पृ. 463 15. देखें- आचार्य नरेन्द्रदेव, बौद्ध धर्म दर्शन, पृ. 250 16. देवेन्द्र सूरि, कर्मग्रन्थ प्रथम, कर्म विपाक 17. संघवी पं. सुखलाल, दर्शन व चिन्तन, पृ. 225 18. आचार्य नेमिचन्द, गोम्मटसार, कर्मकाण्ड - 6 जैन कर्मसिद्धान्त : एक विश्लेषण 19. आचार्य विद्यानन्दी, अष्टसहस्त्री, पृ. 51, उद्धृत-- Tatia N. M., Studies in Jaina Philosophy (P.V. Research Institute, Varanasi-5), p. 227 20. कर्मग्रन्थ प्रथम, कर्म विपाक भूमिका पं. सुखलाल संघवी, पृ.24 जैन सागरमल - जैन कर्म सिद्धान्त का तुलनात्मक अध्ययन पृ. 17-18 (अ) महाभारत : शान्तिपर्व (गीता प्रेस, गोरखपुर) पृ. 129 (ब) तिलक, लोकमान्य बालगंगाधर, गीतारहस्य, पृ. 268 23. आचार्य नरेन्द्र देव, बौद्ध धर्म दर्शन, पृ. 277 24. (अ) देखें-- उत्तराध्ययन सूत्र -- सम्पादक मधुकरमुनि 414113, 23 11 130 (ब) भगवतीसूत्र 1 12 164 25. देखें-- (अ) Tatia, N.M., Studies in Jaina Philosophy (P.V.R.I.), p.254. (ब) जैन सागरमल -- जैन कर्मसिद्धान्त का तुलनात्मक अध्ययन, पृ. 24-27 26. जैन सागरमल जैन कर्मसिद्धान्त का तुलनात्मक अध्ययन, पृ. 35-36 27. वही, पृ. 36-40 28. ज्ञातव्य है कि प्रस्तुत विवरण तत्वार्थसूत्र अध्याय 6 एवं 8, कर्म ग्रन्थ प्रथम कर्मविपाक, पृ. 54 61, समवायांग 30/1 तथा स्थानांग 1 /4/4/373 पर आधारित है। 29. योगशास्त्र (हेमचन्द्र ), ४/१०७. 30. स्थानांग टीका (अभयदेव), 1/11-12 31. जैनधर्म, मुनिसुशीलकुमार, पृ. 84 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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