Book Title: Jain Journal 1991 07
Author(s): Jain Bhawan Publication
Publisher: Jain Bhawan Publication

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Page 23
________________ JULY, 1991 यदि कोई कहे कि बिना लाभ सापेक्ष किसी पत्रिका का प्रकाशन सम्भव नहीं है तो उसके सामने जैन जर्नल का उदाहरण सर्व प्रथम दिया जा सकता है। शासन के उम्दा तथ्यों को प्रस्तुत करना जैन जर्नल का व्यक्तित्व है और यही इसकी लाभ सापेक्षता है । जैन भवन, कलकत्ता धन्यवाद का पात्र है, जिसने आर्थिक कठिनाइयों को स्वयं स्वीकार करते हुए भी पत्रिका को चलाया। पत्रिका का स्तर, मुद्रण, सजावट, आकलन एवं सम्पादन सब कुछ प्रशंसनीव है। जैन जर्नल का यह एक सौभाग्य संयोग है कि उसे श्री गणेश ललवानी जैसे कलम के सिपाही की निरन्तर सेवाएँ प्राप्त हुई । xvii जैन जर्नल अभी तक तो पच्चीस वर्ष का हुआ है। चाँदी का मुकुट उसने ग्रहण कर लिया है । हम उसकी स्वर्ण जयन्ती की कामना करते हैं । हमारा स्नेह और सहयोग सदैव पत्रिका के साथ है । Jain Education International निस्संदेह पत्रिका जगत में 'जैन जर्नल' ने अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। इसका प्रमुख श्रेय श्री गणेश ललवानी के सूझ-बुझ पूर्ण संपादन को जाता है । इसके साथ ही जैन-अजैन विद्वानों द्वारा लिखित प्रमाण-पुरस्सर शोधपूर्ण आलेख इसकी प्रमुख विशेषता है । सांप्रदायिक अभिनिवेश से यह बिल्कुल अछूता रहा है। सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि यह जर्नल किसी व्यक्ति-विशेष या पंथ - विशेष की प्रतिष्ठा या प्रशस्ति को नहीं किन्तु वीतराग- वाणी की प्राण प्रतिष्ठा को ही समर्पित है। केवल इसलिए जैन जर्नल का मेरे मानस पर गहरा प्रभाव है । आकर्षक किन्तु सादगीपूर्ण आवरण पृष्ठ, कलात्मक साजसज्जा, अंक के अनुरूप निबन्ध विषयों का चयन तथा विषयों के अनुरूप चित्रों का संचयन ये सब श्री ललवानी के संपादन - कौशल के प्रमाण हैं । जैन जर्नल अपने स्वर्णिम भविष्य की ओर निरंतर अग्रसर हो यही मंगल कामना है । For Private & Personal Use Only -गणि महिमाप्रभ सागर -मुनि रूपचन्द्र www.jainelibrary.org

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