Book Title: Jain Ganit Parampara aur Sahitya Author(s): Savitri Bhatnagar Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 7
________________ 420 कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड ........................................................................... अंकप्रस्तार (1704 ई.)-कवि लालचंदकृत / परिचय ऊपर दिया है। इनकी रचनाएँ सं० 1761, (1704 ई. में) 'गूढा' में हुई हैं। ऐंचवडि-तमिल भाषा में गणित सम्बन्धी ग्रन्थ है। यह जैनकृति है। इसका व्यवहार व्यापारी परम्परा में विशेष रूप से रहा है। उपर्युक्त विवरण में दिये गये ग्रन्थों के अतिरिक्त गणित पर अन्य ग्रन्थ भी मिलते हैं। कुछ ग्रन्थ ज्योतिष सम्बन्धी गणित पर मुख्य रूप से लिखे गये हैं। भारतीय प्राचीन परम्परा में गणित का उपयोग त्रिलोकसंरचना, राशिसिद्धान्त की व्याख्या और कर्मफल के अंश व फल निरूपण हेतु मुख्य रूप से हुआ है। वास्तुशास्त्र, शिल्पशास्त्र, आयुर्वेद और अन्य विद्याओं में भी गणित का भरपूर उपयोग हुआ है। --0 1 पं० कैलाशचंद्र, दक्षिण में जैनधर्म, पृ०६०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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