________________ स्व: मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ 33338 (vi) आध्यात्मिक विकास के लिए मूर्छा का बल (केन्द्रमुखी) अमूर्छा या वीतरागता के केंद्रापसारी बल से निर्बल होना चाहिए, अर्थात - वीतरागता का केन्द्रापसारी बल मूर्छा का केंद्रमुखी बल __ इन सूत्रों तथा इनके ही समान अन्य सूत्रों से जैन सिद्धांतों को नयी पीढ़ी के लिए आकर्षक एवं प्रेरक बनाया जा सकता है। ये सूत्र जैन धर्म की वैज्ञानिकता के निर्देशक PAL 8 8 88888888888888888 3388888888888856 8822006086253052985602338588836 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org