Book Title: Jain Dharm ko Kuch Bhugol Khagoli Manyataye aur Vigyan Author(s): Satyabhakta Swami Publisher: Z_Kailashchandra_Shastri_Abhinandan_Granth_012048.pdf View full book textPage 3
________________ (१) जैनशास्त्रोंके अनुसार अष्टमीका आधा चन्द्र कभी दिखाई नहीं दे सकता । एक गोल चीजको किसी दूसरी गोल चीजको ढंककर देखो, वह अष्टमीके चन्द्रकी तरह आधी कटी कभी न दिखाई देगी। दो गोल सिक्के हाथमें लो और एकसे दूसरा ढंको । ऐसा कभी नहीं हो सकता कि ढंका हआ सिक्का आधा कटा हुआ-सा दिखाई देने लगे। वह द्वितीया-तृतीयाकी तरह अवनतोदर टेढ़ी कलाएँ ही दिखायगा । अष्टमीके बाद चतुर्दशी तक चन्द्र माकी जैसी शकल दिखाई देती है, वैसी शकल राहु विमान द्वारा ढंकनेपर कभी दिखाई नहीं दे सकती। ऊपरोक्त प्रयोगसे यह असंगति भली-भाँति ध्यानमें आ जाती है। (२) राहु और केतु के विमान चन्द्र और सूर्यके नीचेकी कक्षामें भ्रमण करते हैं । ये सदा नीचे नहीं रहते। केतका विमान तो वर्ष में दो बार अमावस्याके दिन सूर्यके विमानके नीचे आता है। इसी प्रकार राहुका विमान भी तिथिके अनुसार नीचे आता है और कुछ आगे-पीछे होता रहता है और ग्रहणकी पूर्णिमाको सदा या नियम भंगका फिर चन्द्रमाके नीचे आ जाता है। यह स्मरणीय है कि विमान देवता चलाते हैं । क्या ये देवता पंचांगके अनुसार धीमी या तेज गतिसे दौड़ लगाते हैं ? क्या ये देवता इस प्रकार हिसाब लगाते रहते हैं और विमानोंको तिथिके अनुसार मन्द-तीव्र गतिसे दौड़ाते रहते हैं ? वे ऐसा क्यों करते हैं ? एक-सी गति रखकर निश्चिन्ततासे अपना कर्तव्य क्यों नहीं करते ? वे यदि सदा बचकर रहें, तो सदा पूर्णिमा हो और ग्रहण कभी न हो। क्या ही अच्छा रहे यदि देवता मानव जातिपर इतनी कृपा कर सकें जिससे वे स्वयं भी निश्चिन्त रह सकें और मानव समाजको भी तिथियों आदिके चक्करसे मक्ति दिला सकें। (३) जब आकाश स्वच्छ होता है, तब शुक्ल पक्षकी तृतीयाके दिन चन्द्रमाकी मुख्यतः तीन कलाएँ दिखायी देती हैं पर बाकी चन्द्रमा भी धुंधला-धुंधला दिखता है । जब राहुका विमान बीचमें आ गया है, तब पूरा चन्द्रमा धुंधला-धुंधला भी क्यों दिखता है ? आकाशमें विमानोंको स्थिति शास्त्रोंके अनुसार, सूर्य, चन्द्र आदि विमान भारी होते हैं। इसलिये वे अपने आप आकाशमें नहीं रह सकते। उन्हें सम्हालनेके लिए देवताओंकी आवश्यकता होती है। परन्तु ये देवता किस प्रकार आकाश में रहते हैं ? क्या ये देवता हाइड्रोजनसे भरे हुए गुब्बारोंके समान होते हैं जो हवासे हल्के होनेके कारण हवामें बने रहते हैं, उनका वैक्रियक शरीर ऐसा केसे हो जाता है कि वे नाना आकार धारण कर ठोस विमानोंको रोक सकें ? यदि विमान रोकनेके लिए वे अपने शरीरको ठोस बना लेते हैं, तो यह शरीर आसमानमें कैसे बना रहता है ? साथ ही, एक अन्य तथ्य और भी ध्यानमें आता है। वर्तमानमें हम यह जानते हैं कि आसमानमें ऊपर जानेपर वायु विरल होती जाती है। इसलिये ऊँचाईमें जानेपर मनुष्यको ऑक्सीजन साथमें ले जाना पड़ता है । ऐसी स्थितिमें हजारों योजन ऊपर कार्य करनेवाले ये देवता जीवित कैसे रहते होंगे ? क्या ये बिना ऑक्सीजनके ही जीवित रहते हैं ? यह देखा गया है कि सामान्य मनुष्य ५-६ मीलकी ऊँचाई पर बिना ऑक्सीजनके जीवित नहीं रह सकता। इस स्थितिमें सूर्य, चन्द्र आदि विमानोंकी विभिन्न ऊँचाइयों पर स्थित तथा उनके वाहक देवताओं के वर्णनकी व्याख्याके लिए पनर्विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है। सूर्य-चन्द्रकी ऊंचाई शास्त्रोंके अनुसार विभिन्न ज्योतिर्गण आकाशमें भूतलसे ७९० से ९०० योजनकी ऊँचाई पर स्थित -४५३ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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